यह धुँध घोर छछुंदर है
सूरज को रोकने उठती है
फैल के कुछ पल चारों ओर
जोर - जोर से हँसती है।
रोक लिया सूरज को मैंने
देखो सारे जग वालो
आज से मेरा है धरती - अंबर
उजाले की स्मृति मिटा डालो।
लेकिन सच कब मिटता है
झूठ का पर्दा उठ जाता है
तोड़ कुहासे का फाहा - फाहा
सूरज फिर से निकल आता है।
....... मिलाप सिंह भरमौरी
शुभ प्रभात दोस्तों.....