ऐ मजदूर! नमन तुझे
नमन है तेरी माटी को
झेल रहा है सदियों से
पोषितों की बनाई परिपाटी को।
न जमीन का तू मालिक है
न कर्ज तुम्हें मिलता है
न माफ् होता कर्जा तेरा
फिर भी आत्महत्या नहीं करता है
ऐ मजदूर! नमन तुझे
हर गली चौराहे पर मिलता है
काम मिलने की आशा से
चेहरा तेरा खिलता है
धूप में रिक्शा खींचता है
धरती को पसीने से सींचता है।
ऐ मजदूर!
तू ही बनाता है महलों को
अमीरों को उसमें रहने को
तेरे ही सिर से होकर आते
सब ईंट पत्थर सीमेंट के बोरे
पर महल के बन जाते ही
कोई ओर आकर नारियल तोड़े।
ऐ मजदूर!
तू झेलता शोषण ठेकेदारों का
हर माह जो चट कर जाते
मेहनताना तेरा हज़ारों का
जो दस्खत करवाता एक्ट की दिहाड़ी
और देता केबल फूटी कौड़ी।
ऐ मजदूर नमन तुझे।
..….. मिलाप सिंह भरमौरी।