रात का समय था
चौरासी में बैठा था
कृत्रिम रौशनी की झालरों में
मंदिर परिसर चमक रहा था
उस मनमोहक दृष्य को देखकर
यूंही मन में ख्याल आया
इन्ही मंदिरो को ही तो देखने आते हैं सब लोग
छोडकर सब मोहमाया
पर यहां पर हम पूरे परिसर को
तम्बुओं की दुकानों से ढक देते हैं
कहीं पर जूते चप्पलों की दुकान
तो कहीं पर पकौडे और जलेबी रख देते हैं
मंदिरों की मनमोहकता तो
इस तंबू बाजार में ही खो जाती है
कुछ मंदिर तो दिखते ही नहीं हैं
धर्म भावना भी इस झमेले में कहीं सो जाती है
क्यों न निजी लाभ को छोडकर
हम भक्तों की भावना को सर्वोपरी मानें
इस बार मणिमहेष यात्रा के समय
न लगाएं चौरासी मंदिर परिसर में दुकानें
यह खेल खिलौने चप्पल कपडे तो
आजकल हर कहीं मिल जाते हैं
भक्ती भावना से सरावोर दूर दूर से
लोग तो इन मंदिरों को ही देखने आते हैं ।
...... मिलाप सिंह भरमौरी