Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Thursday, 8 January 2015

मासूम बचपन

एक रुपये का सिक्का
उसने झट से जेब से निकाल कर
काउंटर पर रखा

और बडे मासूमियत से बोली
मैंने पैसे दे दिए हैं
आप रहने दो पापा

कितना मासूम होता है बचपन
उनहें क्या पता
कितनी होती है किस चीज की कीमत

एक रुपये के सिक्के से ही
वो खुद को अमीर समझ लेते हैं
कितने ही पवित्र , दिल से बच्चे होते हैं

  ------ मिलाप सिंह भरमौरी

1 comment:

  1. Bharmouri ji, I am a regular reader of your poems. Great stuff.

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