अभी भी गंवार है समाज
बेटियां हैं जिनकी उन्हें सताता है।
दो तीन बेटियां होने के बाद भी
बेटा पैदा करने का प्रेशर बनाता है।
दोस्त करते हैं बात बात में टिंचरे
भाई अगली बार कब
फिर से मिठाई खिला रहे हो।
कब हमें तुम अपने बेटे का ताऊ बना रहे हो।
कम नहीं होती हैं पत्नियां भी
वो भी कोई कसर नहीं छोड़ती हैं।
कचर पचर कचर पचर कानों में
पता नहीं क्या क्या इस बारे में बोलती हैं।
एक ओर वो धर्म के ठेकेदार
क्या क्या सिखाते रहते हैं।
खुद को तो श्लोक पढ़ने नहीं आते सही से
ओर हमें बेटा पैदा करने के मंत्र बताते हैं।
और क्या कहना घर के बुजुर्गों का भी
कभी अप्रत्यक्ष रूप से समझाते हैं।
असफल हो जाता है जब यह प्रयास
तो प्रत्यक्ष रूप से बेदखली का डर दिखाते हैं।
अभी भी गंवार है समाज
बेटियां हैं जिनकी उन्हें सताता है।
दो तीन बेटियां होने के बाद भी
बेटा पैदा करने का प्रेशर बनाता है।
......... मिलाप सिंह भरमौरी
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