Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Thursday, 12 August 2021

पहाड़

अब डर डर कर जीना सीख लो
अब आंसू पीना सीख लो
कब फट जाए वाटर बम
कब हो जाए आंखें बंद
कब दरक जाए पहाड़
कब खिसक जाएं सड़कें।

बस ख़बरें सुनो
भगवान को कोसो
और
फिर भूल जाओ सब
करो इंतज़ार 
फिर ऐसा होगा कब?

कुदरत को जब छेड़ोगे
ऐसे ही दृश्य देखोगे
कुदरत केस दर्ज नहीं करवाती
कुदरत थाने नहीं जाती
कुदरत सिर्फ
अपनी ताकत दिखाती है।

बहुत बांध लिए पानी की धारा
बहुत डूबोई वन सम्पदा पानी में
व्यवसाय तो चमका होगा इससे
लेकिन मानवता चली गई है हानि में

अब तो संभलो।

....मिलाप सिंह भरमौरी

Saturday, 31 July 2021

स्थिरता

स्थिर पानी में
बारिश की बूंदे
करती हैं हिलोरें 
मन की तरह
जैसे भाव उमड़ते हैं असंख्य
फैलाते हैं दायरा
दूर तक सोच का
एक के उपर एक
फिर दूसरा - ओर कितने ही
करते हैं संघर्ष
अपनी परिधि बचाने के लिए।

और
मन जूझता है
विचारों के इस मंथन में
देर तक
सही गलत सही गलत के द्वंद में
पानी को चाहिए
इंतज़ार करे
बारिश के रुक जाने तक
आंधी के रुक जाने तक
फिर पहले जैसी स्थिरता के लिए।

....मिलाप सिंह भरमौरी।

Saturday, 17 July 2021

badal

चिंता में डूबे बादल
सभा कक्ष में बैठे
कर रहे इंतजार समाचार का
कैसा रहा संघर्ष उत्तर का
द्वंद चल रहा लगातार
मन में
क्या जीत होगी साधारण सी
या हार भयानक
जिसका इल्जाम आयेगा
बादलों के सिर
कोसे जाएंगे पल पल
दी जाएगी बद्दुआएं वर्षों तक।

कहर नजर आयेगा सबको
नहीं कहेंगे
बादलों की हार हुई
एक महान संघर्ष में
संघर्ष जिसमें अपना सब कुछ झोंक दिया
प्रयास किया अंत तक
कि पानी बनने से पहले
वे पहुंच सके
निर्जन सूखे स्थान तक
कि पानी का कतरा कतरा
करे नया सृजन जीवन का।

आसमानी बिजली की
कर्कश ध्वनि से
ध्यान टूटा
सभा में बैठे चिंतातुर बादलों का
सबकी निगाहें गई
सभा में आए सन्देश वाहक बादल पर
जो खड़ा था सिर को झुकाए
सामने चुपचाप
नहीं निकल रहे शब्द कोई भी।

कुछ देर बाद
पूछा एक बूढ़े बादल ने
कहो कैसा रहा परिणाम युद्ध का
क्षमा याचना की स्थिति में
उसने सिर को हिलाया
नहीं 
हम हार गए।
हम लडे अंतिम क्षण तक
पर नहीं बचा सके किसी को
बह गया एक पूरा गांव
बन गया वीरान
बह गई मिट्टी रह गए पत्थर
उखड़ गए पेड़
रह गई टूटी जड़ें विनाश का प्रतीक।

हमने पूरी कोशिश की
अपनी दिशा बदलने की
पर भारी जल संग्रह
पर्वतों के बीचोबीच
हर दिशा में बनता रहा अवरोध
उत्सर्जित करता रहा अनवांछित क्रियाएं
कि असफल हो गए हम 
खुद को धकेल पाने में
ओर हो गया भयानक विस्फोट।
 
पर मानव कब मानेगा गलती अपनी
देगा केबल बादलों को दोष
कि कर रहा 
अब अधिक गति से विस्फोट
फट रहे हैं पहले से
बहुत अधिक बादल
पर शायद ही ढूंढेगा
वो हमारी असमर्थता के कारण।


.....मिलाप सिंह भरमौरी