सभा कक्ष में बैठे
कर रहे इंतजार समाचार का
कैसा रहा संघर्ष उत्तर का
द्वंद चल रहा लगातार
मन में
क्या जीत होगी साधारण सी
या हार भयानक
जिसका इल्जाम आयेगा
बादलों के सिर
कोसे जाएंगे पल पल
दी जाएगी बद्दुआएं वर्षों तक।
कहर नजर आयेगा सबको
नहीं कहेंगे
बादलों की हार हुई
एक महान संघर्ष में
संघर्ष जिसमें अपना सब कुछ झोंक दिया
प्रयास किया अंत तक
कि पानी बनने से पहले
वे पहुंच सके
निर्जन सूखे स्थान तक
कि पानी का कतरा कतरा
करे नया सृजन जीवन का।
आसमानी बिजली की
कर्कश ध्वनि से
ध्यान टूटा
सभा में बैठे चिंतातुर बादलों का
सबकी निगाहें गई
सभा में आए सन्देश वाहक बादल पर
जो खड़ा था सिर को झुकाए
सामने चुपचाप
नहीं निकल रहे शब्द कोई भी।
कुछ देर बाद
पूछा एक बूढ़े बादल ने
कहो कैसा रहा परिणाम युद्ध का
क्षमा याचना की स्थिति में
उसने सिर को हिलाया
नहीं
हम हार गए।
हम लडे अंतिम क्षण तक
पर नहीं बचा सके किसी को
बह गया एक पूरा गांव
बन गया वीरान
बह गई मिट्टी रह गए पत्थर
उखड़ गए पेड़
रह गई टूटी जड़ें विनाश का प्रतीक।
हमने पूरी कोशिश की
अपनी दिशा बदलने की
पर भारी जल संग्रह
पर्वतों के बीचोबीच
हर दिशा में बनता रहा अवरोध
उत्सर्जित करता रहा अनवांछित क्रियाएं
कि असफल हो गए हम
खुद को धकेल पाने में
ओर हो गया भयानक विस्फोट।
पर मानव कब मानेगा गलती अपनी
देगा केबल बादलों को दोष
कि कर रहा
अब अधिक गति से विस्फोट
फट रहे हैं पहले से
बहुत अधिक बादल
पर शायद ही ढूंढेगा
वो हमारी असमर्थता के कारण।
.....मिलाप सिंह भरमौरी
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