छोड के रोज की ठक ठक ठक ठक
बस एक बार की हो जाए
बहुत हो गई छिटपुट छिटपुट
अब आर पार की हो जाए
बहुत कठिन है पलायन करना
बेवजह ही पल पल मरना
उनके लहजे में उनकी ही भाषा में
अब खार खार सी हो जाए
बहुत हो गई हाथ मिलाई
गले से मिलना भी बहुत हुआ
काफिर के इन रिश्तों से
अब तार तार की हो जाए
बहुत दिनों तक जुदा रह लिए
अपने वतन के लोगों से
पाक से पोक की धरती को
भारत से मिलाव की हो जाए
------ मिलाप सिंह भरमौरी
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