Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Wednesday, 8 October 2014

Aar paar ki


छोड के रोज की ठक ठक ठक ठक
बस एक बार की हो जाए
बहुत हो गई छिटपुट छिटपुट
अब आर पार की हो जाए

बहुत कठिन है पलायन करना
बेवजह ही पल पल मरना
उनके लहजे में उनकी ही भाषा में
अब खार खार सी हो जाए

बहुत हो गई हाथ मिलाई
गले से मिलना भी बहुत हुआ
काफिर के इन रिश्तों से
अब तार तार की हो जाए

बहुत दिनों तक जुदा रह लिए
अपने वतन के लोगों से
पाक से पोक की धरती को
भारत से मिलाव की हो जाए

------ मिलाप सिंह भरमौरी

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