मंदिर में भगवान
हमारी परोक्ष रूप से
सहायता करते हैं
और हम
पूरी श्रद्धा के साथ
दानपात्र को भरते हैं
और मंदिर के परिसर को
साफ सुथरा रखते हैं
होस्पीटल में डाक्टर
हमारी प्रत्यक्ष रूप से
सहायता करते हैं
जिनको रो चुके होते हैं परिजन
ऐसे शरीरों में भी
जान भरते हैं
और बदले में हम
क्या करते हैं
जगह जगह गंदगी फैला कर
शौचालय और परिसर को गंदा करते हैं
कब सुधरेगें हम
कब सुधरने की
खुद से ही पहल करेंगे हम
क्यों न मंदिर की तरह
सरकारी होस्पीटलों को भी
तन मन से पवित्र रखें हम
और क्यों न
मंदिरों की तरह
सरकारी होस्पीटलों में भी
दानपात्र रखें जाएं
और अपनी अपनी हैसियत से
होस्पीटलों में भी चढावा चढाएं
और प्रशासन
उस पैसे को
होस्पीटल के सुधार पर लगाए
...... मिलाप सिंह भरमौरी
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