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भीतर चला द्वंद्व बाहर चले श्लोक।
इह लोक में फंसे हुए को मिले कैसे परलोक।
जीना है तो अंदर की सुन ले थोडा सा तू पगला बन ले।
देख के अपनी बर्बादी को भी खींच के तू ताली ठोक।
---- मिलाप सिंह भरमौरी
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