कई दिनों से बैठा इन्सान
सपने संजौता रहता है
फर्श पर बिखरे मोतिओं को
उठा - उठा कर पिरौता रहता है
तन्हाई में सपने संजोना
माला के मोती पिरोना
शायद उसकी फितरत है
पर मोतिओं से पिरोई
इस माला को
शन से फिर टूट जाने के लिए
शायद एक पल कम नही है
नये लोगों ने पाले है शौक
सचमुच रखते है कितना जोश
देखा -देखी में बम्ब बनाना
इक - दूजे को नीचा दिखाना
खेल रहे है विज्ञानं से
मानव जाति को भुलाकर
कर रहे है हाथापाई
मजहब को हथियार बनाकर
सोचो जरा
मानव जाति को मिटाने के लिए
एटम बम्ब के बटन को दबाने के लिए
शायद एक पल कम नही है
मिलाप सिंह भरमौरी
सपने संजौता रहता है
फर्श पर बिखरे मोतिओं को
उठा - उठा कर पिरौता रहता है
तन्हाई में सपने संजोना
माला के मोती पिरोना
शायद उसकी फितरत है
पर मोतिओं से पिरोई
इस माला को
शन से फिर टूट जाने के लिए
शायद एक पल कम नही है
नये लोगों ने पाले है शौक
सचमुच रखते है कितना जोश
देखा -देखी में बम्ब बनाना
इक - दूजे को नीचा दिखाना
खेल रहे है विज्ञानं से
मानव जाति को भुलाकर
कर रहे है हाथापाई
मजहब को हथियार बनाकर
सोचो जरा
मानव जाति को मिटाने के लिए
एटम बम्ब के बटन को दबाने के लिए
शायद एक पल कम नही है
मिलाप सिंह भरमौरी
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