Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Tuesday, 3 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति : आगे का भाग..



फिर एक सज्जन ने उसे सलाह दी
भाई चुप -चाप 
तुम हो जाओ 
बेटी के साथ
रहने दो किनारे में
 तुम अपने माँ और बाप
हो सकता है बेटी
 आप की बात न माने 
आजकल के बच्चे है
क्या कर  जाये न जाने
क्या पायोगे तुम फिर 
कैसे जिओगे तुम फिर. 

फिर वो बोला 
 बात तो तुम्हारी ठीक है
पर मेरे और भी दो बच्चे है
कमबख्त इसी समाज में
करने उनके भी रिश्ते है
बात -बात पर 
उनको ससुराल वाले ताने देंगे 
तेरी बहन  ने ऐसा  किया था 
तेरे माँ -बाप ऐसे  है
तुम्हे  क्या  पता भाई साहब 
आज मेरे हलात  कैसे है

उसकी करुणामयी 
स्थिति को देख के
एक उम्र-दराज महिला 
जो बैठी थी उसके सामने
अपने तजुरवे  के हिसाब से बोली
बहुत  देर से सम्भाल रखे थे उसने शब्द
लेकिन अब गुत्थी खोली

आजकल लडकियों को
ज्यादा पढ़ना ही नही चाहिए 
ये सब पढ़ाई  का ही कमाल  है
जो आपके परिवार में हो रहा
इस तरह का ववाल  है
न जाती वो कोलेज 
न होती लडके से मुलाकात
न होती  उनकी बातचीत 
न होता ये सारा बवाल

पंचांग तो कहता है 
ये इक्कसवी शदी है
पर यह  सोच तो कहती है कि 
हम बहुत  पीछे कहीं  है
तीन  हजार साल पहले तो मिलती  थी 
लडकी को शिक्षा 
गार्गी का नाम पढ़ा था 
पता नही कौन सी थी कक्षा 
गार्गी ही क्यों ओरों के भी 
कई उदारण मिलते है
कहते है बहुत  सी विदुषियां
हुई थी वैदिक काल  में 
बहुत  से मन्त्र लिखे है महिलायों ने 
जिन्हें आज भी पढ़ते है 
हम यज्ञ और  जाप  में 
और इस जाति - प्रथा का
 इतना भय कि 
 दे  दी सलाह लडकी को न पढ़ाने  की

आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा
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मिलाप सिंह भरमौरी 

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