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दिल की इस बगिया को तुम कभी कभी महका जाया करो न
सांझ सवेरे तकता रहता हूँ मैं कभी तो छत पर आ जाया करो न
कैसी हो तुम, क्या खैर खबर है मन सोच के यह घबरा जाता है
भोले से इस आशिक को तुम इस उलझन में उलझाया करो न
------- मिलाप सिंह भरमौरी
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