Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Wednesday, 14 August 2013

रेलवे का क्वाटर

रेलवे का क्वाटर

याद  बहुत  आता है 
वो रेलवे का क्वाटर  
रुका  था मै  
एक रात  जहाँ पर
बात उन दिनों की है जब हम 
दर  -वदर  भटके जा रहे थे
कभी पटना कभी लखनऊ  में
बेरोजगारी के धक्के खा रहे थे

ऐसी  ही किसी टक्कर  में
हाँ याद  आया ,रेल के एग्जाम के चक्कर में
मै  जा पहुंचा एक फ्रेंड के पास
बेरोजगारी की एक रात  बिताने की थी अपनी आस
फ्रेंड मेरा रेल का मलाजम  था
उसके पास रेल का क्वाटर  था
वह  मेरा लंगोटिया यार था 
हमारा बचपन का प्यार था 
आशा के अनुरूप उसने स्बागत किया
और  भाबी जी से भी 
खाने -पीने  के लिए अच्छा  प्राप्त किया

रात  को अलग कमरे में  बढिया-सा  बिस्तर हो गया
मै  भी दिन भर का थका  उस पर सो गया 
सुबह  के तीन  बजे हल्की  सी नींद  खुली 
बिस्तर पर जब  हाथ घुमाया 
अचानक मेरी नींद उडी
मै  चौंका , उठ बैठा 
ये सब कैसे हो गया था 
बिस्तर का हिस्सा बुरी तरह से गीला  था
मैंने चारों  तरफ दिमाग घुमाया पर अपने को ही दोषी पाया 
टेबल पर रखे लौटे को देखा उसको भी यूँ - का- त्यों पाया
ये सब मुझ से ही हुआ है 
 पर जो भी है पहली बार हुआ है
बहूत  बुरी लगने लगी वो घड़ी 
सुबह  कैसे मुहं दिखाऊँगा माथे पर चिंता पड़ी

फिर अचानक एक उपाय मन में आया 
खुसी से मनो मन भर आया 
क्यों  न प्रेस  से बिस्तर को सुखाया जाये
इस बदनामी की घड़ी से खुद को बचाया जाये
चोरों के स्टाइल में मैने  मोवइल  के टोर्च को जलाया
और चरों ओर  घुमाया
मन पुलकित हो उठा जब सामने अलमारी में प्रेस नजर आया 
धीरे -धीरे जोर लगा के 
बहूत  कोशिस की सुखाने की
पर जब एक घंटे बाद भी
कोशिस नाकाम हुई खुद को बचाने  की
जैसे  -तैसे  कर  के मैने 
सोच -विचार में रात  बिताई
लोगों का सामना करने के लिए 
नजदीक -नजदीक सुबह  आई 

आठ बजे के लगभग -लगभग
भावी जी  कमरे में आई
 मै  शंकित था थोड़ी सी उससे नजर चुराई
नाश्ता करने आ जाओ उसने मुझसे बोला 
और फिर अचानक बिस्तर की तरफ देखा 
मेरे  तो माथे पर खिंच गई
चिंता की रेखा 
फिर बोली बिस्तर गीला  तो नही हुआ 
यहाँ पर छत टपकती है 
और रात  को बारिश भी हुई है
इन शव्दों को सुनकर मनो मेरी सांसों में साँस आई थी
सचमुच बहुत  ही अनोखी मैने  वो रात  बिताई थी 


……… मिलाप सिंह भरमौरी 

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