Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Friday, 9 August 2013

मै मजदूर हूँ

मै  मजदूर हूँ
मजदूरी से  कमाता हूँ
दिनभर मेहनत  करता हूँ
फिर भी रुखी खाता  हूँ
वो बस  बातें करता है
लोगों को ठगता है
भरपेट खाता  है
ऐश  परस्ती पे 
लुटता है

कर्म इमान  है मेरा
धर्म निभाता हूँ
कभी मन्दिर बनवाता   हूँ 
कभी मस्जिद चुनबाता  हूँ
पर जब वो मजहब का पुजारी
दंगे करवाता  है
तो उस भगदड़ में
मै  ही मारा  जाता हूँ

मै  खून - पसीने से 
तख्त बनाता  हूँ
बस  एक इशारे पर
उस तक ले जाता हूँ
वह  झट से जाकर 
उस पर सो जाता है
उल्ट - फेर  के चक्कर   में खो जाता है
सोये -सोये जब वह 
निर्णय  लेता है
किसी गली मोहल्ले की भगदड़ में 
मै  ही मारा  जाता हूँ

में मजदूर हूँ कभी सड़के  बनाता  हूँ
जून की गर्मी में कोलतार बिछाता हूँ
वो ए सी गाड़ी में 
ऐश  लुटाता  है
मै  कितने पैसे में खाता  हूँ 
मनघडंत  आंकड़े  बनाता  है
जब भी वह  कोई योजना बनाता  है
कमब्खत  मै  ही क्यों  मारा  जाता हूँ



………… मिलाप सिंह भरमौरी 

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