मै मजदूर हूँ
मजदूरी से कमाता हूँ
दिनभर मेहनत करता हूँ
फिर भी रुखी खाता हूँ
वो बस बातें करता है
लोगों को ठगता है
भरपेट खाता है
ऐश परस्ती पे
लुटता है
कर्म इमान है मेरा
धर्म निभाता हूँ
कभी मन्दिर बनवाता हूँ
कभी मस्जिद चुनबाता हूँ
पर जब वो मजहब का पुजारी
दंगे करवाता है
तो उस भगदड़ में
मै ही मारा जाता हूँ
मै खून - पसीने से
तख्त बनाता हूँ
बस एक इशारे पर
उस तक ले जाता हूँ
वह झट से जाकर
उस पर सो जाता है
उल्ट - फेर के चक्कर में खो जाता है
सोये -सोये जब वह
निर्णय लेता है
किसी गली मोहल्ले की भगदड़ में
मै ही मारा जाता हूँ
में मजदूर हूँ कभी सड़के बनाता हूँ
जून की गर्मी में कोलतार बिछाता हूँ
वो ए सी गाड़ी में
ऐश लुटाता है
मै कितने पैसे में खाता हूँ
मनघडंत आंकड़े बनाता है
जब भी वह कोई योजना बनाता है
कमब्खत मै ही क्यों मारा जाता हूँ
………… मिलाप सिंह भरमौरी
मजदूरी से कमाता हूँ
दिनभर मेहनत करता हूँ
फिर भी रुखी खाता हूँ
वो बस बातें करता है
लोगों को ठगता है
भरपेट खाता है
ऐश परस्ती पे
लुटता है
कर्म इमान है मेरा
धर्म निभाता हूँ
कभी मन्दिर बनवाता हूँ
कभी मस्जिद चुनबाता हूँ
पर जब वो मजहब का पुजारी
दंगे करवाता है
तो उस भगदड़ में
मै ही मारा जाता हूँ
मै खून - पसीने से
तख्त बनाता हूँ
बस एक इशारे पर
उस तक ले जाता हूँ
वह झट से जाकर
उस पर सो जाता है
उल्ट - फेर के चक्कर में खो जाता है
सोये -सोये जब वह
निर्णय लेता है
किसी गली मोहल्ले की भगदड़ में
मै ही मारा जाता हूँ
में मजदूर हूँ कभी सड़के बनाता हूँ
जून की गर्मी में कोलतार बिछाता हूँ
वो ए सी गाड़ी में
ऐश लुटाता है
मै कितने पैसे में खाता हूँ
मनघडंत आंकड़े बनाता है
जब भी वह कोई योजना बनाता है
कमब्खत मै ही क्यों मारा जाता हूँ
………… मिलाप सिंह भरमौरी
वाह मिलाप जी बहुत अच्छा लिखा है
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