Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Wednesday, 7 August 2013

सुर्ख होंठो से

सुर्ख होंठो से शराब छलक  रही है
तेरे  होने से रात महक रही है

सोचता हूँ किस तरह व्यान   करूं
मेरे होंठों  पे जो बात थिरक रही है

पहाड़ों की इस बर्फीली सर्दी में
जिस्म में जैसे आग  दहक   रही है

झौंकें  जबानी के जाग रहे है ' अक्स '
कुछ तेरी भी चाल  बहक  रही है

बदली से चाँद निकल रहा है ऐसे 
जैसे चेहरे से नाकाव सरक रही है


........ मिलाप  सिंह  भरमौरी   

No comments:

Post a Comment