ख़ुशी के नाम की कोई शय
मुझे तेरी कसम न मिली
गजल तो झिलमिलाई थी जहन में
पर कलम न मिली
अपनी मंजिल को दूर होता देखकर
मै भी परेशान हुआ
पहुंच पाता अपनी मंजिल पर जिससे
वो डगर न मिली
मेरा दर्द मिटा दे कोई 'मिलाप'
मैंने साईं बारोबार किया
मगर मुझे वो मन्दिर ,वो जादू-टोना,
पीरोहरम न मिली
मैंने सोचा शव -ए - गम है
कभी तो ये ख़त्म होगी ही
मै रहा आस में ही मगर
ख़ुशी की कोई सहर न मिली
एक मौका आता है जब सभी को
दुनिया अच्छी लगती है
मुझको आती पसंद जरा सी मगर
वो दहर न मिली
……मिलाप सिंह भरमौरी
मुझे तेरी कसम न मिली
गजल तो झिलमिलाई थी जहन में
पर कलम न मिली
अपनी मंजिल को दूर होता देखकर
मै भी परेशान हुआ
पहुंच पाता अपनी मंजिल पर जिससे
वो डगर न मिली
मेरा दर्द मिटा दे कोई 'मिलाप'
मैंने साईं बारोबार किया
मगर मुझे वो मन्दिर ,वो जादू-टोना,
पीरोहरम न मिली
मैंने सोचा शव -ए - गम है
कभी तो ये ख़त्म होगी ही
मै रहा आस में ही मगर
ख़ुशी की कोई सहर न मिली
एक मौका आता है जब सभी को
दुनिया अच्छी लगती है
मुझको आती पसंद जरा सी मगर
वो दहर न मिली
……मिलाप सिंह भरमौरी
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