Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Thursday, 19 September 2013

लुटी- सी कलम

देख के अपनी
 दुर्दशा को
रो रही
 लुटी- सी  कलम
तरह -तरह के
 छद्दम लुटेरे 
लूट  रहे
 इसकी अस्मत

ए  को पी  
गधे को जी
एस को नो 
कर  रही कलम 
पकड़ के अपने
 छिन्न  वस्त्रों को
चौराहे की ओर  
बढ़ रही कलम 

चोर -डकैत 
सत्ता का अटैक 
रिशवत  के पैक
कितना कुछ
 सह  रही कलम
कोने पे बैठ 
पहन  के ब्लैक 
बुजदिल - बुद्धिजीवी
मना रहे उसका मातम



......मिलाप सिंह भरमौरी 

Monday, 16 September 2013

विश्व- कर्मा दिवस

जय  हो जय  हो
 विश्व- कर्मा  
सबकी प्रार्थना 
स्वीकार करना

जय हो जय हो 
विश्व- निर्माणी 
उन्नतोमुखी लिखना 
सबकी कहानी 

जय हो जय हो
 औजारों के मालिक
सद -उत्तमता की 
ओर  हो साधक 

जय हो जय हो 
विश्व -अभियंता
सुख- समृद्धि भोगे
 सारी  जनता 

.....मिलाप सिंह भरमौरी

(विश्व- कर्मा  दिवस के शुभ अवसर पर सभी दोस्तों को हार्दिक शुभकामना )

Friday, 13 September 2013

कोटि - कोटि नमन तुझे हिंदी


गुजराती  विचारकों  की कल्पना  
बंग सुधारकों की परेरणा  
स्वतन्त्रता संग्राम की महा सिपाहिनी  
समस्त भारत  की सम्पर्क संचारनी  
जय जय नमन 
नमन तुझे हिंदी
कोटि - कोटि नमन तुझे हिंदी

अंग्रेजी है तेरी अत्याचारनी  
सियासत की भी है तू शिकारनी 
अफसरशाही भी दुश्मनी  में  कम  नही
हे ! नव  भारत  को जीवनदायनी 
जय जय नमन 
नमन तुझे हिंदी
कोटि - कोटि नमन तुझे हिंदी

समस्त भारत  बोलियों से पौषित 
अधूरी सी तू राजभाषा घौषित 
स्बतन्त्र भारत में अभी तक शौषित 
अंग्रेजी सौतन तुम पर  आरोपित
जय जय नमन 
नमन तुझे हिंदी
कोटि - कोटि नमन तुझे हिंदी


( हिंदी दिवस की समस्त मित्रों को हार्दिक बधाई )



मिलाप सिंह भरमौरी 



Thursday, 12 September 2013

आज मेरे भारत में


आज मेरे भारत में 
क्या हो रहा है ?
यह क्यों हो रहा है ?

आज मेरे भारत में 
दस वर्षों के लिए
एडवांस में अन्न है
फिर भी कोई बच्चा 
दस दिनों से भूख के मारे  
तडफ रहा है
ऐसा  क्यों हो रहा है ?

आज मेरे भारत में
 फौलादी सिपाही
जो दुनिया  को जीत  सकता है
सीमा  पर चूहे -गीदडों  के हाथों
मर रहा है
यह क्यों हो रहा है ?

आज मेरे भारत में
ग्रेजुएट, मास्टर डिग्री वाले 
बेरोजगार है
और मेट्रिक पास 
सरकारी नोकरी  कर  रहा है
यह क्यों हो रहा है ?
आज मेरे भारत में 
यह  क्या हो रहा है ?


मिलाप सिंह भरमौरी 

Wednesday, 11 September 2013

एक पल कम नही है

कई दिनों  से बैठा इन्सान 
सपने संजौता  रहता है
फर्श  पर बिखरे मोतिओं  को 
उठा - उठा  कर  पिरौता  रहता है

तन्हाई  में  सपने संजोना 
माला के मोती पिरोना 
शायद उसकी फितरत है
पर मोतिओं  से  पिरोई
इस  माला को 
शन  से फिर टूट जाने के लिए
शायद एक पल कम नही है

नये लोगों ने पाले  है शौक 
सचमुच रखते है कितना जोश 
देखा -देखी   में बम्ब बनाना  
इक - दूजे को नीचा  दिखाना

खेल रहे है विज्ञानं से
मानव जाति  को भुलाकर
कर   रहे है हाथापाई 
मजहब को हथियार बनाकर

सोचो जरा 
मानव जाति  को मिटाने  के लिए
एटम बम्ब के बटन को दबाने के लिए
शायद एक पल कम नही है


मिलाप सिंह भरमौरी 

Monday, 9 September 2013

धरा का स्वर्ग : मणिमहेश


आसमान में उड़ते बादल  
मध्यम - मध्यम श्यामवर्ण में
धरा पर फैली बर्फ दूर तक 
सफेद चादर सी सफेद वर्ण में
कभी अंधकार कभी उजाला 
मनमोहक दृश्य लगे निराला 
सपना नही यह अपना देश है
धरा का स्वर्ग यह मणिमहेश है

उन्मुक्त ख्याल में उड़ते  बादल  
मदमस्त- सी चाल  में घूम रहे है
फेरी लगाते  बार -बार
देखे मिलाप अगणित बार
मधुर स्पर्श से छुए धरा को
मानों  प्रेम से चूम रहे है
प्रकृति संगम का यह जीता भेष है
धरा का स्वर्ग यह मणिमहेश है

प्रकृति ने ऐसा  नशा बिखेरा  
भूल गये सब मेरा - तेरा
शिव की चिलम  का नशा निराला
प्राणी लगे जैसे पिया हो प्याला 
इन्सान प्रार्थना करे शिव से
भूले  न यह दृश्य मन से 
यह दुनिया  का बस  मंजर एक है 
धरा का स्वर्ग यह मणिमहेश है 


मिलाप सिंह भरमौरी 


bharmour





Friday, 6 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति : धर्म पर गलत असर


कोई गलत असर नही पड़ेगा धर्म पर
इससे और भी आस्था बड़ेगी धर्म पर 
और भी दिव्या होगी 
हवन कुण्ड  की ज्वाला 
और भी विस्तृत होगा
 धर्म का उजाला 
एक ही डोर से बंध जायेगा समाज
सुनहरे युग का होगा आगाज 

पहले जैसे ही बजेगी मन्दिरों में घंटिया 
पहले जैसे ही होगी आरती -पूजा 
पहले वाले ही होंगे आराध्य 
पर आराधना होगी पहले से भी  सभ्य  
वही  शास्त्र होंगे 
वही  वेद  होंगे
वही  होंगे पुराण  
उनसे ही जायेगा समस्त जगत को ज्ञान 

कर्म  -कांड वही  होंगे 
वही  होगा अखंड ध्यान
पहले जैसे ही मुण्डन  होंगे
 वैसे ही होंगे पिंड - दान
वही  धर्मस्थल होंगे 
वही  कर्म स्थल होंगे
वही  मन्त्र होंगे 
वही  शलोक  होंगे 
वही  रिवाज होंगे 
और वही  होंगे लोग

कुछ थोडा सा अंतर भी होगा 
जो  इस प्रथम  हिन्दू महा संगीति का मन्त्र होगा
पहला यह कि  
कर्म-कांड करते 
या पूजा पाठ  करते 
कोई पंडित किसी की  जाति  नही पूछेगा 
यजमान परिचय 
सिर्फ गोत्र तक ही सीमित  होगा

दूजा यह कि 
कर्म -कांड करने वाला 
शास्त्रों को पढने वाला 
सिर्फ -और -सिर्फ पंडित होगा
न  कि वो इक ब्राहमण होगा 
वो होगा सच्चा शास्र्तों  का ज्ञानी 
न की कोई वंशानुगत अज्ञानी
उसे होगा वेदों का ज्ञान
उसे याद  होगा पुराण  
उसमे होगी दिव्या ज्योति 
उसमे होगा दिव्या ध्यान
वो किसी भी जाति  का होगा 
पर उसमे होगा वान्षित  ज्ञान

इस नई  व्यवस्था से कुपित नही होंगे देव
न ही पितृ गण  हमसे रुठेंगे
कितना सभ्य  हो गया है इन्सान
वो उपर बैठे सोचेंगे 
इससे न धीमी होगी ध्यान की माला
वो उसी गति से घूमेंगी
हमारे धर्म की बुलंदी 
फिर एक बार आसमान को चूमेंगी

आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा


मिलाप सिंह भरमौरी

Thursday, 5 September 2013

बापू और प्याज


कई दिनों से मैंने 
प्याज नही खाया था 
आज  मगर  कुछ  ज्यादा ही 
जी ललचाया था

कई दिनों से मैंने
टी वी  पर भी इसकी  अनुपस्थिति पाई  थी 
प्याज के भाव की कोई 
मसालेदार खबर नही आई  थी

मैंने सोचा रेट घट गया होगा
इसलिए अचानक 
सुर्ख़ियों से हट गया होगा

मैंने उठाया बैग  
चल पड़ा  लेने प्याज
अच्छे -अच्छे  प्याज उठाकर 
दुकानदार से तुलवाए 
हाथ बडाकर  ख़ुशी -ख़ुशी में 
कपड़े के बैग  में भरवाए

रेट पूछा  उससे तो 
मेरी बुद्धि चकराई  
मैंने भी थोड़ी सी तिकडम बाजी   अजमाई 

रौब से बोल मैंने उससे
अबे क्या मुझसे ज्यादा पैसे ले रहा है
नीयूज  वाला तो चैनल पर
इसकी कोई खबर नही दे रहा है

दुकानदार बोला  मुझसे
अरे गुस्सा मत करो भाई
हमारी तो सारी  की सारी  मेहनत की है कमाई  

ये तो 
हलात   ने थोड़ी सी गडबडी कर  दी है
प्याज तो अभी महंगा ही है
बस  बापू की खबर चल गई है



मिलाप सिंह भरमौरी

Wednesday, 4 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति :आगे का भाग .....



नही -नही- यह 
गलत सलाह है
हमें किसी ओर ही राह  पे चलना होगा
अब हम इक्कसवी सदी में है
अब धीरे -धीरे 
ये समाज ही बदलना होगा

नही छोड़ना  है हिन्दू धर्म को
नही थामना  है किसी और धर्म को
बस  धर्म के इस मिथ्या पक्ष को बदलना है
जो चुप -चाप प्रवेश कर  गया था इसमें
इक विष ,इक रोग बनकर 
इस पुरातन -सनातन तन में
इस चिरंजीवी धर्म में

उस जाति  -प्रथा को दूर करना है
इसका कोई ओर  उपचार नही है
हमें 
प्रथम हिन्दू महा संगीति के
पथ पर ही  चलाना है

सुनहरी था हमारा आदिकाल  
भविष्य भी हमारा भव्य ही होगा
अब वक्त आ गया है 
इस कुरीति को दूर करने का
अब हर कोई यहाँ पर सभ्य होगा

बहुत  झेला  है अपमान 
बहुत  लुटाया है मान 
बस  किसी ने चुपके  से शरारत  कर  के
छीन  लिया था हमसे सम्मान
हम इस सब के अधिकारी नही थे
हमें बनाया गया था धोखे से
वास्तव में हम भीखारी  नही थे 

हमने भी जन्म लिया था 
उसी रंग के खून से 
उसी क्रिया से ,उसी प्रक्रिया से
हमको भी भेजा  था मालिक ने 
मानव  की जून  में
पर यहाँ  हम लोगों से धोखा हुआ था 


कविता का अगला भाग आगे की पोस्ट में भेजूंगा 



मिलाप सिंह भरमौरी 

Tuesday, 3 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति : आगे का भाग..



फिर एक सज्जन ने उसे सलाह दी
भाई चुप -चाप 
तुम हो जाओ 
बेटी के साथ
रहने दो किनारे में
 तुम अपने माँ और बाप
हो सकता है बेटी
 आप की बात न माने 
आजकल के बच्चे है
क्या कर  जाये न जाने
क्या पायोगे तुम फिर 
कैसे जिओगे तुम फिर. 

फिर वो बोला 
 बात तो तुम्हारी ठीक है
पर मेरे और भी दो बच्चे है
कमबख्त इसी समाज में
करने उनके भी रिश्ते है
बात -बात पर 
उनको ससुराल वाले ताने देंगे 
तेरी बहन  ने ऐसा  किया था 
तेरे माँ -बाप ऐसे  है
तुम्हे  क्या  पता भाई साहब 
आज मेरे हलात  कैसे है

उसकी करुणामयी 
स्थिति को देख के
एक उम्र-दराज महिला 
जो बैठी थी उसके सामने
अपने तजुरवे  के हिसाब से बोली
बहुत  देर से सम्भाल रखे थे उसने शब्द
लेकिन अब गुत्थी खोली

आजकल लडकियों को
ज्यादा पढ़ना ही नही चाहिए 
ये सब पढ़ाई  का ही कमाल  है
जो आपके परिवार में हो रहा
इस तरह का ववाल  है
न जाती वो कोलेज 
न होती लडके से मुलाकात
न होती  उनकी बातचीत 
न होता ये सारा बवाल

पंचांग तो कहता है 
ये इक्कसवी शदी है
पर यह  सोच तो कहती है कि 
हम बहुत  पीछे कहीं  है
तीन  हजार साल पहले तो मिलती  थी 
लडकी को शिक्षा 
गार्गी का नाम पढ़ा था 
पता नही कौन सी थी कक्षा 
गार्गी ही क्यों ओरों के भी 
कई उदारण मिलते है
कहते है बहुत  सी विदुषियां
हुई थी वैदिक काल  में 
बहुत  से मन्त्र लिखे है महिलायों ने 
जिन्हें आज भी पढ़ते है 
हम यज्ञ और  जाप  में 
और इस जाति - प्रथा का
 इतना भय कि 
 दे  दी सलाह लडकी को न पढ़ाने  की

आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा
कविता के पिछले अंको को पढने के लिए कृपया यहाँ कालिक करें 


मिलाप सिंह भरमौरी 

Monday, 2 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति : क्यों ? आगे का भाग .......

प्रथम हिन्दू महा संगीति :  क्यों ?   आगे का भाग .......



......... फिर  झट से
 पलट  कर  वो जा 
पहुंच गया
आधुनिक परिद्रिश्य  पर
पहुंच गया वो 
कुछ भारत के राजघरानों पर
कुछ  व्यवसायिक  घरानों पर
नाम गिनाने  लगा वो 
उसने उससे शादी की थी 
उसकी फलानी जाती थी
उसने फ़लाने  धर्म में शादी की

उनको क्यों ये समाज कुछ नही कहता 
क्यों पहुंच जाता है 
मेरे घर तक ये
अगर उनको कुछ नही कहता तो क्यों 
 नही बनाता  
ऐसी  व्यवस्था 
जिसमे न हो   ये जाति  प्रथा 
अगर पूछे कोई जाती तो सिर्फ हिन्दू कहे 
और भाई चारा धर्म का केंद्र बिंदु रहे

ये सब बाते उसने
 अपने  दिल को तसल्ली देने के लिए की थी
फिर उसके बाद
 उसने  एक लम्बी साँस ली थी 

फिर जा पहुंचा वो 
अपनी घरवाली पर
वो पढ़ी -लिखी है
बैंक मनेजर है 
जब कहीं  आस -पडौस में 
या कहीं  जान  -पहचान  में 
इस तरह का विवाह होता था
तो वो बहुत  हंसती थी
मुस्कुराती थी 
मजाक उड़ाती थी
बहुत  बातें करती थी 
उनके चरित्र के बारे में
उसे क्या पता था 
कुछ सालों  बाद 
ये सब सब होगा 
उसके भी घर में
ये सब सोचा नही था 
सपने में भी उसने

आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा 



........milap singh bharmouri

Sunday, 1 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति क्यों ? : आगे का भाग



मै  ब्राह्मण  हूँ
 पर मेरी बेटी
 एक हरिजन युवक से शादी करना चाहती है
सुंदर है, कामयाव है
 पढ़ा - लिखा है 
अगर कोई कमी दिखे तो मुझे बताओ
 वो निर्भय  होकर हमसे कहती है

बात तो सच है
जो हमने  देखे ब्राह्मण युवक है
वो उसके आगे कुछ भी नही है
किसी  भी तरह से  परख लो
वो उसके आगे टिकते ही नही है
पढ़ाई  में भी, चतुराई में भी
और कमाई  में भी

उसका उनसे कोई मेल नही है
पर कैसे समझाऊ  
इस जाति  प्रथा से निकलना 
मेरे लिए बच्चों का खेल नही है

अगर बेटी की मानु
तो भाई -बन्धु 
माता  -पिता सब 
मुझसे दूर हो जांएगे 
अगर उनकी मानु  
तो ये  नादान  बच्चे न जाने क्या कर  जायेंगे 

मै  फसा हुआ हूँ 
बीच  में पित्रि -भक्ति  के, पुत्री प्रेम  के
मै  किसको अपनाऊ 
 मै  किस को ठुकराऊ  
मै  पढ़ा -लिखा हूँ
 पर इस निर्नेय के लिए
 किसके पास जायूं 

फिर थोडा - सा सम्भल के 
वो कहता है
शुरू के वेद  भी कहते है कि 
हिन्दू धर्म  में 
कोई जाती- प्रथा नही थी 
कितने ही सभ्य  थे वो जन 
उनकी आज जैसी दुर्दशा नही थी
गर स्तर अंतर था  तो 
वो व्यवसाय पर निर्भर था
लेकिन हर व्यक्ति का 
सामाजिक भविष्य उज्ज्वल था। .....


आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा 



......milap singh bharmouri