देख के अपनी
दुर्दशा को
रो रही
लुटी- सी कलम
तरह -तरह के
छद्दम लुटेरे
लूट रहे
इसकी अस्मत
ए को पी
गधे को जी
एस को नो
कर रही कलम
पकड़ के अपने
छिन्न वस्त्रों को
चौराहे की ओर
बढ़ रही कलम
चोर -डकैत
सत्ता का अटैक
रिशवत के पैक
कितना कुछ
सह रही कलम
कोने पे बैठ
पहन के ब्लैक
बुजदिल - बुद्धिजीवी
मना रहे उसका मातम
......मिलाप सिंह भरमौरी
दुर्दशा को
रो रही
लुटी- सी कलम
तरह -तरह के
छद्दम लुटेरे
लूट रहे
इसकी अस्मत
ए को पी
गधे को जी
एस को नो
कर रही कलम
पकड़ के अपने
छिन्न वस्त्रों को
चौराहे की ओर
बढ़ रही कलम
चोर -डकैत
सत्ता का अटैक
रिशवत के पैक
कितना कुछ
सह रही कलम
कोने पे बैठ
पहन के ब्लैक
बुजदिल - बुद्धिजीवी
मना रहे उसका मातम
......मिलाप सिंह भरमौरी