जिन्दगी कई बार
अँधेरे बंद कमरे- सी लगती है
अँधेरा बस अँधेरा
आगे- पीछे हर तरफ
न कोई दोराहा
के सोचें किस तरफ जाएँ
न कोई मंजिल के तलाशें
बस शुन्य सा होकर
रह जाता है आदमी
जिन्दगी कई बार
इतनी खूबसूरत लगने लगती है
की खुशियाँ बस खुशियाँ
दिखाई देती है हर तरफ
रास्ते फूलों का बिस्तर लगते है
मंजिल करीब से करीब दिखाई देती है
मस्ती में झूम के
आसमान को छूने लगता है आदमी
...............मिलाप सिंह भरमौरी
अँधेरे बंद कमरे- सी लगती है
अँधेरा बस अँधेरा
आगे- पीछे हर तरफ
न कोई दोराहा
के सोचें किस तरफ जाएँ
न कोई मंजिल के तलाशें
बस शुन्य सा होकर
रह जाता है आदमी
जिन्दगी कई बार
इतनी खूबसूरत लगने लगती है
की खुशियाँ बस खुशियाँ
दिखाई देती है हर तरफ
रास्ते फूलों का बिस्तर लगते है
मंजिल करीब से करीब दिखाई देती है
मस्ती में झूम के
आसमान को छूने लगता है आदमी
...............मिलाप सिंह भरमौरी
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