Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Wednesday, 16 October 2013

जिन्दगी कई बार

जिन्दगी कई बार 
अँधेरे बंद कमरे- सी लगती है
अँधेरा बस  अँधेरा
आगे- पीछे हर तरफ

न कोई दोराहा 
के सोचें किस तरफ जाएँ 
न कोई मंजिल के तलाशें 
बस  शुन्य सा होकर 
रह जाता है आदमी

जिन्दगी कई बार 
इतनी खूबसूरत लगने लगती है
की खुशियाँ बस  खुशियाँ  
दिखाई देती है हर तरफ

रास्ते  फूलों का बिस्तर लगते है 
मंजिल करीब से करीब दिखाई देती है
मस्ती  में झूम  के
आसमान को छूने लगता है आदमी 



...............मिलाप सिंह भरमौरी 

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