जब कोई तेरी बहन को छेडे
या बुरी नजर से देखे
आग लग जाती है सीने में
खून बहने लगता है पसीने में
कब तू सब्र कर पाता है
दो चार उसी वक्त जड देता है
कितनी नफरत हो जाती है पैदा
कुछ नहीं दिखता उसमें इंसान जैसा
पर तू जब खुद मन में लिए दुर्बुध
किसी की बहन को छेडता है
या बुरी नजर से देखता है
हवस भरे मन से
उसके घर या रास्ते की तरफ बढता है
तो तेरी अक्ल कहां खो जाती है
वो सब इंसानियत कहां खो जाती है
जब तू लौटता है व्यभिचार करके
दूसरे के घर में जहर भरके
क्यों नहीं तेरा मन करता मर जाने को
जहर निगल लेने को
फंदे से लटक जाने को
बडे फक्र से अपनी नीचता
अपने दोस्तों को सुनाता है
किसी इज्जत की निलामी को
गली गली तक पहुंचाता है
सुन तू तो दोषी है ही
तेरी यह बातें सुने वाले भी
दोषी ठहराऐ जाएंगे
तुझको फैंका जाएगा
उफनते तेल के कडाहे में
उनके कानों में भी
उफनता तेल डाला जाएगा
उसके घर में देर हो सकती है
मगर अंधेर नहीं होता
मैं महसूस कर रहा हूं
अभी से तुमको रोता
अभी भी संभल जा कुछ भला हो जाएगा
तू भी पाप से बच जाएगा
उसका भी घर बच जाएगा
मैं नहीं कहता सब तेरी ही गलती होगी
हो सकता है वो भी तुझे फोन करती होगी
पर राह गलत है मंजिल भी गलत ही होगी
जो जो करेगा पाप वही बनेगा भोगी
------ मिलाप सिंह भरमौरी
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