Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Saturday, 31 August 2013

क्यों ? प्रथम हिन्दू महा संगीति

क्यों ?
 प्रथम हिन्दू महा संगीति

कारण  है
 प्रथम  हिन्दू महा संगीति के लिए
मानवता और धर्म की प्रगति के लिए
यह जरूरी है

मिला था मुझे ट्रेन में
एक अजनबी सज्जन 
हृस्ट  -पुष्ट 
अफ्फसर  स्तर का
स्वर्ण - ब्राह्मण

बहुत  दुखी था , कुंठित
चारो और से 
समाज की बेड़ियों से बंधा 
छटपटा  रहा था 
घायल पंछी - सा 
जैसे जाति   प्रथा  ने 
शिकार  कर  लिया  था उसका

जैसे आखरी साँस की तपिश  को
 ठंडा करने के लिए
किया हो इशारा
 उसने दो घूंट पानी के लिए

फिसल गयी उसकी जुवान 
अजनवी पेसेंजर के सामने
उसके वो क्या लगते थे 
उसको रहा ही नही व्यथा में ध्यान में

उसने कहा  मै 
बहूत  दुखी हूँ ,व्यथित हूँ 
असमंजस में हूँ 
मुझे घेर रखा है समाज ने
मुझे बांध रखा है 
बेड़ियों में जाति  प्रथा ने 
में पढ़ा -लिखा हूँ  
फिर भी असमंजस में हूँ 
निर्नेय लेने में…….


आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा 



.....milap singh bharmouri

Friday, 30 August 2013

परिचय ( प्रथम हिन्दू महा संगीति )



महा संगीति 
मतलव धर्म संशोधन 
महा निर्णेय
सामाजिक और  राजनीतिक  तौर  
से वाध्य  धार्मिक निर्णेय

रोज रटते है हम
इतिहास को 
रोज पढ़ते है हम
समाज को
फायदा तब है अगर
हम पुराने तजुरबो को
उनकी अच्छाईयों को 
आज के समय में अपनाए
और उनके द्वारा की गई गलतियों को न दोहराएँ

महा संगीति !
महा संगीति
 कब होती है
महा संगीति तब होती है
जब धर्म, मानने वालों में दुबिधा बन  जाये
जब धर्म, समाज के ढांचे के लिए  असुविधा बन जाये
जब लोग धर्म को छोड़ने लगे
किसी और धर्म से जुड़ने लगे
जब अन्य मत
लालच के बीज  बोने लगे
जब धर्म के अस्तित्व को खतरा होने लगे
तब होती है 
महा संगीति


......milap singh bharmouri

Thursday, 29 August 2013

प्रथम हिन्दू महासंगीति

जब - जब धर्म में
कुरीतियाँ आई
समाज व्यवस्था जब
उसने उलझाई 
बौध ,जैन समाज ने
सभाएं बुलाई
और  समय अनुसार 
समस्याएं सुलझाई

क्स्स्प ,मित्र ,तिस्स  ,श्रवण 
सब के सब थे सभ्य  जन
जनता की इच्छा उन्होंने न ठुकराई
सरल  ,सुगम  व्यवस्था अपनाई 

टूट रहा है हिन्दू समाज 
कर  रहे  है धर्मांतरण   
यह सब उहीं  नही हो रहा
कुछ तो होगा इसका कारण

कारण  सभी जानते है
और  धर्मान्तरित को भी
पहचानते  है
सबसे बड़ा कारण  है जाति  व्यवस्था
जब इससे बाहर  निकलने  का 
नही दिखता  रास्ता
लोग बदल लेते है आस्था 

फहरा देते है 
वस्ती पे और का झंडा 
सच में हिन्दू धर्म के लिए यह है 
सबसे बड़ा फंदा

अब !
उठो जागो ,धर्म रक्षको 
उठो जागो , हिन्दू विचारको
उठो जागो ,हिन्दू शासको 
अब वक्त आ गया है
इस महा कुरीति को दूर करने का
अब वक्त आ गया है 
प्रथम  हिन्दू महा संगीति  करने का


...... milap singh bharmouri

Wednesday, 14 August 2013

रेलवे का क्वाटर

रेलवे का क्वाटर

याद  बहुत  आता है 
वो रेलवे का क्वाटर  
रुका  था मै  
एक रात  जहाँ पर
बात उन दिनों की है जब हम 
दर  -वदर  भटके जा रहे थे
कभी पटना कभी लखनऊ  में
बेरोजगारी के धक्के खा रहे थे

ऐसी  ही किसी टक्कर  में
हाँ याद  आया ,रेल के एग्जाम के चक्कर में
मै  जा पहुंचा एक फ्रेंड के पास
बेरोजगारी की एक रात  बिताने की थी अपनी आस
फ्रेंड मेरा रेल का मलाजम  था
उसके पास रेल का क्वाटर  था
वह  मेरा लंगोटिया यार था 
हमारा बचपन का प्यार था 
आशा के अनुरूप उसने स्बागत किया
और  भाबी जी से भी 
खाने -पीने  के लिए अच्छा  प्राप्त किया

रात  को अलग कमरे में  बढिया-सा  बिस्तर हो गया
मै  भी दिन भर का थका  उस पर सो गया 
सुबह  के तीन  बजे हल्की  सी नींद  खुली 
बिस्तर पर जब  हाथ घुमाया 
अचानक मेरी नींद उडी
मै  चौंका , उठ बैठा 
ये सब कैसे हो गया था 
बिस्तर का हिस्सा बुरी तरह से गीला  था
मैंने चारों  तरफ दिमाग घुमाया पर अपने को ही दोषी पाया 
टेबल पर रखे लौटे को देखा उसको भी यूँ - का- त्यों पाया
ये सब मुझ से ही हुआ है 
 पर जो भी है पहली बार हुआ है
बहूत  बुरी लगने लगी वो घड़ी 
सुबह  कैसे मुहं दिखाऊँगा माथे पर चिंता पड़ी

फिर अचानक एक उपाय मन में आया 
खुसी से मनो मन भर आया 
क्यों  न प्रेस  से बिस्तर को सुखाया जाये
इस बदनामी की घड़ी से खुद को बचाया जाये
चोरों के स्टाइल में मैने  मोवइल  के टोर्च को जलाया
और चरों ओर  घुमाया
मन पुलकित हो उठा जब सामने अलमारी में प्रेस नजर आया 
धीरे -धीरे जोर लगा के 
बहूत  कोशिस की सुखाने की
पर जब एक घंटे बाद भी
कोशिस नाकाम हुई खुद को बचाने  की
जैसे  -तैसे  कर  के मैने 
सोच -विचार में रात  बिताई
लोगों का सामना करने के लिए 
नजदीक -नजदीक सुबह  आई 

आठ बजे के लगभग -लगभग
भावी जी  कमरे में आई
 मै  शंकित था थोड़ी सी उससे नजर चुराई
नाश्ता करने आ जाओ उसने मुझसे बोला 
और फिर अचानक बिस्तर की तरफ देखा 
मेरे  तो माथे पर खिंच गई
चिंता की रेखा 
फिर बोली बिस्तर गीला  तो नही हुआ 
यहाँ पर छत टपकती है 
और रात  को बारिश भी हुई है
इन शव्दों को सुनकर मनो मेरी सांसों में साँस आई थी
सचमुच बहुत  ही अनोखी मैने  वो रात  बिताई थी 


……… मिलाप सिंह भरमौरी 

Friday, 9 August 2013

मै मजदूर हूँ

मै  मजदूर हूँ
मजदूरी से  कमाता हूँ
दिनभर मेहनत  करता हूँ
फिर भी रुखी खाता  हूँ
वो बस  बातें करता है
लोगों को ठगता है
भरपेट खाता  है
ऐश  परस्ती पे 
लुटता है

कर्म इमान  है मेरा
धर्म निभाता हूँ
कभी मन्दिर बनवाता   हूँ 
कभी मस्जिद चुनबाता  हूँ
पर जब वो मजहब का पुजारी
दंगे करवाता  है
तो उस भगदड़ में
मै  ही मारा  जाता हूँ

मै  खून - पसीने से 
तख्त बनाता  हूँ
बस  एक इशारे पर
उस तक ले जाता हूँ
वह  झट से जाकर 
उस पर सो जाता है
उल्ट - फेर  के चक्कर   में खो जाता है
सोये -सोये जब वह 
निर्णय  लेता है
किसी गली मोहल्ले की भगदड़ में 
मै  ही मारा  जाता हूँ

में मजदूर हूँ कभी सड़के  बनाता  हूँ
जून की गर्मी में कोलतार बिछाता हूँ
वो ए सी गाड़ी में 
ऐश  लुटाता  है
मै  कितने पैसे में खाता  हूँ 
मनघडंत  आंकड़े  बनाता  है
जब भी वह  कोई योजना बनाता  है
कमब्खत  मै  ही क्यों  मारा  जाता हूँ



………… मिलाप सिंह भरमौरी 

Wednesday, 7 August 2013

सुर्ख होंठो से

सुर्ख होंठो से शराब छलक  रही है
तेरे  होने से रात महक रही है

सोचता हूँ किस तरह व्यान   करूं
मेरे होंठों  पे जो बात थिरक रही है

पहाड़ों की इस बर्फीली सर्दी में
जिस्म में जैसे आग  दहक   रही है

झौंकें  जबानी के जाग रहे है ' अक्स '
कुछ तेरी भी चाल  बहक  रही है

बदली से चाँद निकल रहा है ऐसे 
जैसे चेहरे से नाकाव सरक रही है


........ मिलाप  सिंह  भरमौरी   

Monday, 5 August 2013

कितनी संगदिल है

कितनी  संगदिल है  मेरी चाहत 
दिल को  पहुंचाती नही मेरे  राहत 

हर हंसी से नजर मिलाते  हो
देखी  है मैंने तेरी भी शराफत

प्यार पर शक करना मोहबत में 
हुस्न की यारो है पूरानी  आदत

तेरी हरकतें में सब पहचानती हूँ
दिल में कालिख बातों में हलावत

सिर्फ इक बार इनायत कर  दे
फिर उम्रभर करूंगा तेरी इबादत


……… मिलाप सिंह भरमौरी 

Saturday, 3 August 2013

ख़ुशी के नाम की

ख़ुशी के नाम की कोई शय
 मुझे तेरी  कसम न मिली
गजल तो झिलमिलाई थी जहन  में
 पर कलम न मिली

अपनी मंजिल को दूर होता देखकर
  मै  भी परेशान  हुआ
पहुंच पाता  अपनी मंजिल  पर जिससे
 वो डगर न मिली

मेरा दर्द मिटा दे  कोई 'मिलाप'
 मैंने साईं बारोबार  किया
मगर मुझे वो मन्दिर ,वो जादू-टोना,
पीरोहरम   न मिली

मैंने सोचा शव -ए -  गम  है 
कभी तो ये  ख़त्म होगी ही
मै  रहा आस में ही मगर
 ख़ुशी की कोई सहर  न मिली

एक मौका आता  है जब सभी को 
दुनिया अच्छी  लगती है
मुझको आती पसंद जरा सी मगर
 वो दहर  न मिली




……मिलाप सिंह भरमौरी 

Friday, 2 August 2013

दिल तो मेरा तोड़ दिया है

दिल तो मेरा तोड़ दिया है
अब क्यों तरस खाते हो
गैर के हो कर  के क्यों अब
मुझसे प्यार जताते हो

बफा की राह  पे चल करके
हमने उम्र बिताई है
कबूल  है हमको उसकी सब
उसने जो जताई है
वक्त -ए  - कयामत है अब
तुम हमको क्यों भरमाते हो

ये दुनिया तो आगाज है इक 
ये कोई अंजाम नही है
उड़ने वाले परवाज कहें पर
ये कोई परवाज नही है
ये तो इक भ्रम- सा है 
मुझे सुनहरे फरिश्ते बताते है

दिल तो मेरा तोड़ दिया है
अब क्यों तरस खाते हो
गैर के हो कर  के क्यों अब
मुझसे प्यार जताते हो

……मिलप सिंह भरमौरी