Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Thursday, 19 June 2014

Garmi ka mousam

बहती  नहीं  हवा  जरा  भी
झौंके  कहीं  पर  छुप  गए हैं

सूरज  जी हैं  अब  आग बबूले
क्रोध  से  इसके  यह  डर  गए हैं

झुला  रहे  हैं  हाथ  से  पंखा
दिवारों  में  सब  दुवक  गए  हैं

जमीन  कर  रही  त्राहि  -  त्राहि
बडे-  बडे  दरख्त  भी  झुलस  गए हैं

आसमान  है  साफ  खाली-  खाली
बादल  नहीं  कहीं  दिख  रहे  हैं

प्यास  के  मारे  यह  उडते  परिन्दे
धरती  पर  तडफ  के  गिर  रहे  हैं

विभत्स  कर  रहा  हर  दृश्य 'मिलाप'
बूढे  जीव -  जन्तु  मर  के  सड  रहे हैं

          ------ मिलाप सिंह भरमौरी

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