बैठा हूँ चौरासी में
भोले के मंदिर के आगे।
तांबे के नंदी के पास
तख्ती से पीठ लगा के।
----- मिलाप सिंह भरमौरी
बैठा हूँ चौरासी में
भोले के मंदिर के आगे।
तांबे के नंदी के पास
तख्ती से पीठ लगा के।
----- मिलाप सिंह भरमौरी
पानी बहने की
आवाज सुनाई देती है
गाडिय़ों का यहाँ
कोई शोर नहीं है।
शुद्ध हवा के झोंके
सरसराते हैं यहाँ
दम घोटता धुआँ
किसी ओर नहीं है।
न शराब का ठेका
न घरेलू मिलती है यहाँ
कुगती की तरह सुंदर
कोई गांव नहीं है।
------ मिलाप सिंह भरमौरी
गिर रहा था
अमृत सा पानी यहाँ झरनों से
हमने दो हाथ जोड कर
झुक कर पी लिया ।
हो चुका था तार- तार
इमान खींच तानी में
हमने बैठ कर
चौरासी में खुद ही सी लिया ।
लोग जाते हैं स्वर्ग को
मरने के बाद सुना है
हमने स्वर्ग सा जीवन
यहाँ आकर जी लिया ।
------------- मिलाप सिंह भरमौरी
ढूँढ रहे थे इधर उधर
जन्नत तो यहीं बसी है
इससे सुंदर कुदरत की काया
शायद ओर कहीं नहीं है
यही तो है वादिए भरमौर
यही तो है वादिए भरमौर।।
------ मिलाप सिंह भरमौरी
महसूस यूँ हुआ कुछ
आकर अपने गांव में
जैसे गोदी में भर लिया हो
प्यार से मां ने ।
इसकी मिट्टी के कण-कण से
मेरा रिश्ता गहरा है
सारा शरीर रोम- रोम
इससे ही तो बना है ।
फक्र होता है
इसकी आबोहवा से
जिससे मेरी जीव संरचना बनी है
रक्त दिया है मेरी रग- रग को इसने
और मुझको सांसे दी है ।
----- मिलाप सिंह भरमौरी