Milap Singh Bharmouri

Milap Singh Bharmouri

Thursday, 21 November 2013

बापू आशा राम अमर हो गये है

बापू  आशा राम
 अमर  हो गये है
मुझको तो कुछ ऐसा लगता है
पर्याय बन चूका है उसका नाम
आते जाते हर कोई उसकी बातें करता है

उसके बारे जो आज मैंने सुना है
आपको भी बतलाता हूँ
उसकी महिमा को
व्याख्या सहित सुनाता हूँ

जब आज दोपहर मै
कलोनी से गुजर रहा था
तो चार पांच  औरतों में
कुछ खुसर पुसर चल रहा था
जब कान  के पर्दों  को मैंने
थोडा उधर झुकाया
तो उधर से मैंने यह
रहस्य पाया

इस रेल की  नौकरी की  टैंशन ने
हमारे  मर्दों  को
पच्चास की  उम्र में ही फेल   कर   दिया है
और उधर देखो
बापू आशा राम
पच्चहतर की  उम्र में भी पास हो गया है

उसी वक्त हाल्ट  से
लोकल ने हार्न बजाया
मैंने जल्दी जल्दी
स्टेशन की  ओर  कदम बढ़ाया
जब गाड़ी में बैठा तो
वहाँ पर भी कुछ
कॉलेज के लड़के बैठे थे
आपस में वो तरह तरह की
बातें कर  रहे थे

उनमे से एक को  बार बार
फोन आ रहे थे
शायद गर्ल फ्रेंड का होगा
उनमे से एक बोला
पहले हम तो सोचते  थे तू भी
हमारी तरह अकेला है
पर आज फोन से लग रहा है
तू तो असली बापू आशा राम का चेला है

फिर नाईट ड्यूटी में भी मैंने
कुछ शव्द सुने थे
रिटायरमेंट पर बैठे
कुछ इम्प्लॉई  इकठ्ठे काम  कर   रहे थे

मजाक- मजाक में एक बोला
अरे इतनी रत हो गई
तू अभी घर नही गया
उसने भी उत्तर में कहा
अरे भाई ! अब पहले वाला जोश नही रहा
दूसरा झट से बोला
क्या बात करता है भाई
बापू आशा राम को देखो
उसका चेला बन जा सांई

इतनी बातें सुनते ही
मेरे अंतर्मन ने कहा
मिलाप यह बापू आशा राम
लोकोक्ति है या मुहावरा



...........मिलाप सिंह भरमौरी



Monday, 18 November 2013

एक बच्चे का नियम

काश!  इक सरकार ऐसी बने 
जो वास्तव में हितकारी हो 
एक कठोर कानून बनाकर रोके जो 
बढ़ती जनसंख्या की  बीमारी को

जो सब धर्मो पर लागु हो 
जो सब वर्गो पर लागु हो 
एक जीवित बच्चे का नियम 
जिसे मानने  पर हर कोई बाध्य हो

जिसे तोड़ने पर जुर्माना  हो 
और दोषी को कठोर हर्जाना हो 
जिसमे धारा  और उप धारा  हो 
जिस से बचने का न कोई बहाना हो

इसके लाभ -हानियों की  सूची  बने
चुनाव के पोस्टर की  तरह घर- घर में बंटे  
हर धर्म मजहव की  शादी से पहले 
हर दुल्हे -दुल्हन को ये मिले

इसमें दंड का कठोर प्रवधान हो 
जिसे सोच के हर कोई सावधान हो 
और मानने  वाले को सुविधाएँ भी मिले 
इसलिए खुद- व् -खुद मानने  को राजी हर इंसान हो 



.......................मिलाप सिंह भरमौरी 


कविता का अगला हिस्सा अगली पोस्ट में भेजूंगा ..

Wednesday, 6 November 2013

इस तरह राजनीती से

इस तरह राजनीती से
 हम  शिकार  हुए  थे
पिछले महीने छुट्टी पर
जब हम अपने गांव गये थे

जाते- जाते अपने कल्चर से कुछ
ज्यादा ही प्यार आया था
अपने कबीले की  टोपी
पहन  के जायेंगे
मन में विचार आया था

दुकान पर जाके  बढ़िया- सी
मैंने टोपी खरीदी थी
और  बढ़े चाव के साथ
सिर  पर पहनी थी

गांव में जाकर लेकिन
मसला कुछ गड़बड़ा गया था
जब अपने इक खास दोस्त ने
घूर के देखा था

जितने भी राह  में
पहचान  के लोग मिले
सभी ने कुछ न कुछ
कॉमेंट मुझपे जड़े

फिर मैंने इक दोस्त से
पूछा
इस टोपी का है क्या मसला

उसने तुरंत कहा
भाई सिम्पल सी कहानी है
हर गांव में टोपी आज
राजनीती की  निशानी है

आपने सिर  पर इस  पार्टी की   पहनी है
जिसने घूर के देखा
वो दूसरी पार्टी का आदमी है

लाल रंग बी. जे. पी.  का है
हरा रंग कांग्रेस का है
आप किस पार्टी के है
सबको आप का सिर  कह  रहा है

मैंने कहा
चलो दूसरा ही रंग खरीद के लायेंगे
उसने फटाक  से कहा
भाई आप थर्ड मोर्चे के कहलायेंगे

याद  रखना यहाँ नंगे सर ही चलना
किसी न किसी पार्टी के कहलाओगे वरना
मैंने झट से टोपी उतारी
और अपने बैग में रख ली



...................मिलाप सिंह भरमौरी

कविता का आगे का भाग अगली पोस्ट में भेजूंगा 

Friday, 1 November 2013

दीवाली के इस पवित्र -पावन

लक्ष्मण - जैसा  हो भ्रातृ- प्रेम 
हनुमान -जैसी हो सबमें भक्ति 

सीता- जैसा सतीत्व सर्वत्र हो 
मर्यादा पुरषोत्तम सी हो  हर अभियक्ति 

ज्ञान की  ज्योति मन- मन चमके 
घर- घर में हो माता लक्ष्मी 

हो राम राज्य की  कल्पना सार्थक 
सब में हो मन वश करने की  शक्ति 

कोई विकार- अवसाद की  ओर  बढ़े न 
हो दीवाली   की  लौ सी सांसारिक  बस्ती  


दीवाली के इस पवित्र -पावन  त्यौहार की  मेरी ओर  से
सभी दोस्तों को हार्दिक सुभकामना 
दीवाली का यह पवित्र त्यौहार आपके लिए सुबह और मंगलमय हो 


..............मिलाप सिंह  भरमौरी  


Monday, 28 October 2013

वंदे माँ तरम अब माते

वंदे माँ तरम  अब माते  
है सरमायेदार के चंगुल में
लूट - घसूट  भ्रस्ट निक्रिस्ठ  
खूब पनप  रहे इस जंगल में 

ठेकेदार का है राज यहाँ पर 
बस  ठेकेदारी चलती है 
जिस चिन्ह पर यह हाथ  रख  दे 
उसकी ही सरकार बनती है 

जिसको यह खरीदना चाहे 
सरकार उसी को बेचती है 
घाटे  का है या लाभ का उपक्रम 
सब मापदंड किनारे रखती है 

बाल्को , बेचा बी. एस .एन. एल .बेचा 
सब कुछ धीरे- धीरे बेच रही है 
कितने सपूत है उसके बेटे 
चुपके से भारत माता देख रही है 

गिद्द - सी नजर गड़ाए है 
कि रेह  न जाये विभाग सरकारी कोई 
शेयर मार्किट में पैसे लगाने थे 
बेच दिए सब इम्प्लॉई 

निजी हस्पतालों में हो रहा इलाज
निजी स्कूलों में हो रही पढाई 
बेच कर   चिकित्सा- शिक्षा सरकार 
निजी हाथों  को दे रही कमाई

अगर सब कुछ प्राइवेट ही करना ही है 
तो क्यों रहे यह सरकार भी सरकारी 
क्यों चुने इन सरमायदार के चमचों को 
क्यों रहे सत्ता में ये व्यभिचारी 

क्यों न हम भी जनमत बना ले
पाँच  साल कि सरकार के लिए 
इक वैशविक टैंडर निकालें  
जो देश सब से ज्यादा घूस  दे 
उस देश से  अपना प्रधानमंत्री 
और रास्ट्रपति बना लें 



....................मिलाप सिंह भरमौरी 


Friday, 25 October 2013

वागी हुए प्याज

बहुत  युगों  तक सेवा की है
इसने भारत के गरीब लोगों की
दाल- सब्जियां कितनी भी मंहगी हुई
पर खुद पिस- पिस कर  इसने 
आवश्यकता पूरी की थी भोजन की

आर्थिक मंदी को आने नही दिया 
इसने कई बार भारत की भूमि में
आश्चर्यचकित था विश्व सारा की 
ऐसा  क्या है  भारत के गरीबों की रसोई में 

विश्व सारे - का - सारा जब 
आर्थिक मंदी झेल रहा था 
भारत का गरीब आदमी उस वक्त
प्याज से रोटी पेल रहा था 

पर अफ़सोस!
धीरे- धीरे यह रहस्य 
आई . एस. आई . के हाथों लग गया 
साम - दाम - दंड- वेद  अपनाकर उसने 
हमारे भोले भाले  प्याज को वागी कर  दिया 

अब भारत की एजेंसिओ
 कोई तरीका अपनाओ
इस वागी हुए प्याज को समझाओ  
ऐसा  ही चलता रहा तो
बहुत  गडबड हो जाएगी 
भूख की पीड़ा से बहुत  बड़ी अवादी
 भारत की मर जाएगी 



...........मिलाप सिंह भरमौरी 


Thursday, 24 October 2013

soldha kangra land sliding

पिछले कल  सोलधा  में
लैंड स्लाइडिंग से 
दस मकान पल में 
जमीन में बिखर गये है
भूकम्प प्रभावित डेंजरस जोन है यह
बहुत  पहले से 
हमारे विज्ञान  कह  रहे है

पर मानता कौन है 
कोई भी नही
लिखा रह जाता है 
बस  किताबों में कहीं  

मत करो खिलबाड़
पर्यावरण से तुम
पर्यावरण  विरोधी 
गतिविधियाँ छोड़ दो
मत बनाओ पहाड़ों  में हाइड्रो प्रोजेक्ट 
लोगों को मौत के कुंए में धकेलना छोड़ दो 

सोलधा  तो शिवालिक श्रेणी में है 
यहाँ राहत   सामग्री 
पहुँच सकती है 
भरमौर तो उच्च हिमालय में है 
यहाँ छोटी सी भी गलती लोगों  को
एक विकट समस्या में उलझा सकती है

बहुत  दुर्गम इलाका है यह
बहुत  भंगुर है इसकी भू संरचना 
तहस  नहस हो जाएगा  सब कुछ 
छोड़ अभी भी प्रकृति से खेलना 


................मिलाप सिंह भरमौरी 

भगवान  सोलधा  लैंड स्लाइडिंग  से प्रभावित लोगों के दुःख को कम करने मर उनकी सहायता करे 


Tuesday, 22 October 2013

BHARMOUR BACHAO ABHIIYAN

सडक के स्तर तक पहुंच रहा है 
जगह- जगह पर पानी अब
कैसी दुर्दशा है कैसी हालत है
कैसे सुनाये चम्बा- भरमौर 
मार्ग की कहानी  हम

बस  में बैठे  ऐसा लगता है
जैसे  बस  चल रही है रावी  के उपर
सारे  सडक के डंगे  पानी में डूबे  है
मिटटी सारी-  की- सारी  नम है अंदर तक

भगवान करे  न 
कोई  बादल  फट जाये
सारे - का- सारा मार्ग
 रेत - सा ढह जाये

बहुत  दुर्गम क्षेत्र है यह
बहुत  बर्बादी हो जाएगी फिर
यहाँ तक राहत पहुचाने  में
बहुत  देरी हो जाएगी फिर

स्थल मार्ग गया रावी  में सब
पहाड़ी क्षेत्र है मौसम खराब होगा
नही पहुंच सकते है हेलिकोप्टर अभी
न्यूज़ चेनल पर सरकार का जबाव होगा

ऐसी नौबत आने से रोको
भाई ऐसी आफत आने से रोको
संकल्प करो आवाज उठाओ 
बजोली होली प्रोजेक्ट  को रोको



.................मिलाप सिंह भरमौरी




Monday, 21 October 2013

bharmour bachao

गुमराह  किया है 
स्थानीय लोगों को
बजोली- होली प्रोजेक्ट के दलालों ने
चालीस साल तक नौकरी पक्की होगी
ऐसे सपने भरे है उनके ख्यालों में

दो हजार सत्तरा  तक तो इसकी
कंसट्रकशन पूरी हो जाएगी
इसके साथ ही आपकी भी
 बंद मजदूरी हो जाएगी

उसके बाद  तो केवल
 कम्पनी पैसा कमायेगी 
और हमारे उपर रात- दिन 
कुदरती प्रकोप की चिंता मंडराएगी  

यह सच है कोई झूठ नही है
भूकम्प के लिए यह कोई
 सेफ जोन नही है
वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है यह बातें
ये कोई हजार टन  के सोने वाले 
सपने- सी बात  नही है

सपना देखा खुदवाई करवा दी
 पैसे के लालचियों ने
और यहाँ कोई असर नही है 
विज्ञानं की चेतावनिओं  से

जगह- जगह के बनावटी जलाशयों से
हवा में जो वाष्प बन के उड़ेंगे 
वही  तो इस घटी के उपर 
वाटर- बम्ब बनके गिरेंगे

जल- थल, जल- थल, प्रलय- प्रलय 
हर और बजेगा रूद्र नाद
हर तरफ फैलेगी विभिश्त  खबरें 
फिर याद आएगा एक बार केदारनाथ

भाई अभी भी वक्त अभी भी सोचो
संकल्प से उठो इस प्रोजेक्ट को रोको
नही तो फिर भविष्य अंधकार मय  है
कर  के तैयारी  कई प्रकोप खड़े है


...............मिलाप सिंह भरमौरी 


BHARMOUR BACHAO ABHIYAN
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SAVE BAHRMOUR
STOP BAJOLI -HOLI PROJECT
THESE PROJECTS ARE  DANGEROUS FOR HILLY ENVIRONMENT

Sunday, 20 October 2013

भरमौर बचाओ

भरमौर बचाओ  
भरमौर बचाओ  
अगर धीरे से नही सुनते 
तो जोर- जोर से चिल्लाओ

शांत घाटी  में कर्कश 
नारा  गुंजाओ 
बजोली होली प्रोजेक्ट हटाओ

बहुत  हुआ खिलबाड़  
कुदरत से
अब और न होने  देंगे  हम
हंसती बस्ती घाटी  को
बद्रीनाथ न बनने देंगे हम

जगह- जगह पानी भर के
भू- संतुलन  बिगाड  रहे है
भूकम्प के डेंजरस जोन में
बेबकूफ  बिल्ली के गले में 
घंटी बांध रहे है 

इनका क्या जायेगा पर
यह तो प्रोजेक्ट बनाकर निकल जायेगे
फंस भी गया कोई
कुदरती कहर  में
हेलीकाप्टर मंगवाकर 
निकल जायेगे 

लोकल लोगो 
तुम तो जागो
तुम को तो यह सब सहना है
बादल  फटेगें,  स्लाइडिंग होगी
तुम को तो पानी में बहना है

लोकल ही क्यों 
यह धर्म- स्थल है
बिलकुल- बिलकुल बद्रीनाथ- सा
सुना होगा नाम आपने मणिमहेश  का

वो  इस घाटी  में ही है
लाखों भक्त आते है यहाँ पर
यह कोई निर्जन स्थान नही है
बंद करो प्रोजेक्ट बनाना 
क्या तुम को बद्रीनाथ में जो हुआ 
अब उसका जरा भी ध्यान नही है


.........मिलाप सिंह भरमौरी 


BHARMOUR BACHAO ABHIYAN
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human life is precious
do not play with nature
save bharmour
stop bajoli holi project

Thursday, 17 October 2013

स्वामी लक्ष्मी नारायण जी


स्वामी लक्ष्मी नारायण जी
 जय हो तुम्हारी
विनती सुनते हो
 तुम  सदा हमारी 

दिव्या छठा है 
तेरी बहुत  प्यारी
उसपे चंबा की
 ख़ूबसूरती न्यारी

महिमा तुम्हारी 
 बहुत  ही गहरी 
दुःख संकट के 
तुम हो प्रहरी 

प्रभु सदा मुझे तेरे
 चरणों में रखना
भटकूँ कहीं  तो
 मेरा  हाथ पकड़ना


............मिलाप सिंह भरमौरी 


चंबा का चौगान

चंबा का चौगान 
खूबसूरत मैदान
कर  देता ख़ूबसूरती से 
आने- जाने वालों को हैरान

पता नही क्यों ?..
आज फिर दिल कर  रहा  है
मैं आऊं  तेरे पास
सैंकू  मीठी - सी  धूप  को 
स्पर्श करूं नीली- सी घास

और बैठू  
रावी  कैफे में
कुछ पल के लिए
बहुत   खूबसूरत  दिखती है 
उस खिड़की से 
रावी  बल लिए

पता नही क्यों ?.....
आज फिर दिल कर  रहा है
माथा टेकूं  
लक्ष्मी - नरायण मन्दिर में
बैठ कर  
संग्रहालय के बरामदे पर
खोजू खुद को ही 
अपने अंदर से



................मिलाप सिंह भरमौरी 

Wednesday, 16 October 2013

जिन्दगी कई बार

जिन्दगी कई बार 
अँधेरे बंद कमरे- सी लगती है
अँधेरा बस  अँधेरा
आगे- पीछे हर तरफ

न कोई दोराहा 
के सोचें किस तरफ जाएँ 
न कोई मंजिल के तलाशें 
बस  शुन्य सा होकर 
रह जाता है आदमी

जिन्दगी कई बार 
इतनी खूबसूरत लगने लगती है
की खुशियाँ बस  खुशियाँ  
दिखाई देती है हर तरफ

रास्ते  फूलों का बिस्तर लगते है 
मंजिल करीब से करीब दिखाई देती है
मस्ती  में झूम  के
आसमान को छूने लगता है आदमी 



...............मिलाप सिंह भरमौरी 

Saturday, 12 October 2013

Cyclone प्रभावित india



lakshna mata :bharmour
















Cyclone प्रभावित india  के east coast
 के लोगों के लिए लक्षणा mata  से प्रार्थना karo....

हे माते  तेरे  बच्चों को 
जरा सी न खरोंच आये 

बहुत  गरीब है तेरे वासी
जान  माल  की न चोट आये 

कुछ तू ही कर  दे करिश्मा 
बड़ी ममतामयी है तू

यह कहर  समुन्द्र में  ही बरस जाये
जमीन तक न पहुंच पाए 


.........मिलाप सिंह भरमौरी 

Thursday, 10 October 2013

जय हनुमान जी

hanuman : lahla bharmour
















जय हनुमान जी लाहला वाले 
राम - भक्त जी कमाला  वाले

आते -जाते की रक्षा करते 
भुत -प्रेत सब तुझसे डरते

लाहला के मोड़ पर बास तुम्हारा
भरमौर का है यह गलियारा

मणिमहेश के प्रथम दर्शन होते
जाग  उठते यहाँ भाग भी सोते

जय जय जय कार  करो सब
जय जय जय हनुमान कहो सब


.............मिलाप सिंह भरमौरी 

Wednesday, 9 October 2013

पहाड़ों पर कब्जा कर रहे है

पहाड़ों पर कब्जा कर  रहे है
कर  रहे है पूंजीपति 
ऐश  परस्ती में गिफ्ट कर  रही
सरकार देश की सम्पत्ति 

हर जगह
 निजीकरण दिखाई दे रहा है
विकास के नाम की कोई झूठी 
सफाई दे रहा है

सडकों के निर्माण में
 ठेकेदारी बढ़ रही है
अब हाइड्रो प्रोजेक्ट भी 
प्राइवेट कम्पनिया निर्माण  कर  रही है
क्यों न हो ?
सरकार के मन्दिर में
अच्छी रकम भेंट चढ़ रही है

यह पूंजीपति 
जमकर लोगों का शोषण कर  रहे है
फेक्ट्री एक्ट ,लेवर एक्ट 
सबका उलंघन कर  रहे है

मजदूरों के बच्चे सडक किनारे 
कोलतार के ड्रमों से 
कुछ करते हुए मिलते है
बाल  मजदूरी अपराध है यहाँ
कुछ पढ़े -लिखे  लोग  कहते  है 

स्कुल , शिक्षा , सुपोषण 
उनके लिए सरकारी फाइलों में लिखा जाता है
हर कानून हर एक्ट यहाँ पर 
पहले पूंजीपतियो के चरणों में रखा जाता है



.............मिलाप सिंह भरमौरी 

Tuesday, 8 October 2013

हाइड्रो प्रोजेक्ट


धडल्ले से बन रहे है
छोटे - छोटे हाइड्रो -प्रोजेक्ट 
पहाड़ों में
लूट  रहे है ठेकेदार  सरमायेदार  
हजारों लाखों करोड़ों में

मंत्री जी भी सारे  के सारे  
डूबे  हुए है घी के डिब्बों में
दिला  रहे है क्षणिक नौकरी 
अपने साईण्ड डी . ओ . से

साल दो साल में कंसट्रकशन पूरी
नौकरी गई भाड़  में
पर मंत्री जी को क्या फर्क पड़ा  
वो तो अब तक जीत गया चुनाव में

बेरोजगारी फिर से वैसी की वैसी
लैंड होल्डर भी छले  गए
प्राकृतिक संसाधनों से 
मिलने वाले पैसे 
सारे  पूंजीपतियों के बैग में चले गए

क्या सचमुच लोकतंत्र हो चुका  है
इतना भंगुर
सरकार  के पास 
प्रोजेक्ट बनाने को पैसे नही
और बना रहे है लुटेरे शशुन्द्र  

अगर प्रोजेक्ट बनाने ही है
तो सरकारी बनाओ 
बेरोजगारों को परमानेंट 
रोजगार दिलाओ  
लैंड होल्डर को मुआबजा दिलाओ 
भूगोल और पर्यावरण के सारे 
मापदंड अपनाओ 


............मिलाप सिंह भरमौरी 

आतंक में है भरमौर सारा


gareema villaage : bharmour
















आतंक  में है भरमौर सारा
आतंक है जंगली रीछों  का
कैसे रहे निर्भय हम
कोई समाधान बताओ इन जीवों का

घर की छत   पर आ  जाते  है 
खूब खाते है मक्की और सेबों को
लोग डर  -डर  के जी रहे है घर में
कोई अकेला जाता नही खेतों को

कितने  ही लोग घायल किये है
अपने ही घर के आंगन में
हाल  क्या कर  देंगे यह उनका 
गर गया हो कोई जंगल में

क्या यह अचानक पनप  पड़े है
या छोड़ दिए है कहीं ओर  से जंगल वालों ने
जो भी हो कारण  इसका पर
हो रहा है खिलबाड़  इंसानी जानों  से


......मिलाप सिंह भरमौरी 


रीछ  : एक भयानक  जंगली जानवर है। जिसे स्थानीय बोली में रिख कहते है 

Thursday, 19 September 2013

लुटी- सी कलम

देख के अपनी
 दुर्दशा को
रो रही
 लुटी- सी  कलम
तरह -तरह के
 छद्दम लुटेरे 
लूट  रहे
 इसकी अस्मत

ए  को पी  
गधे को जी
एस को नो 
कर  रही कलम 
पकड़ के अपने
 छिन्न  वस्त्रों को
चौराहे की ओर  
बढ़ रही कलम 

चोर -डकैत 
सत्ता का अटैक 
रिशवत  के पैक
कितना कुछ
 सह  रही कलम
कोने पे बैठ 
पहन  के ब्लैक 
बुजदिल - बुद्धिजीवी
मना रहे उसका मातम



......मिलाप सिंह भरमौरी 

Monday, 16 September 2013

विश्व- कर्मा दिवस

जय  हो जय  हो
 विश्व- कर्मा  
सबकी प्रार्थना 
स्वीकार करना

जय हो जय हो 
विश्व- निर्माणी 
उन्नतोमुखी लिखना 
सबकी कहानी 

जय हो जय हो
 औजारों के मालिक
सद -उत्तमता की 
ओर  हो साधक 

जय हो जय हो 
विश्व -अभियंता
सुख- समृद्धि भोगे
 सारी  जनता 

.....मिलाप सिंह भरमौरी

(विश्व- कर्मा  दिवस के शुभ अवसर पर सभी दोस्तों को हार्दिक शुभकामना )

Friday, 13 September 2013

कोटि - कोटि नमन तुझे हिंदी


गुजराती  विचारकों  की कल्पना  
बंग सुधारकों की परेरणा  
स्वतन्त्रता संग्राम की महा सिपाहिनी  
समस्त भारत  की सम्पर्क संचारनी  
जय जय नमन 
नमन तुझे हिंदी
कोटि - कोटि नमन तुझे हिंदी

अंग्रेजी है तेरी अत्याचारनी  
सियासत की भी है तू शिकारनी 
अफसरशाही भी दुश्मनी  में  कम  नही
हे ! नव  भारत  को जीवनदायनी 
जय जय नमन 
नमन तुझे हिंदी
कोटि - कोटि नमन तुझे हिंदी

समस्त भारत  बोलियों से पौषित 
अधूरी सी तू राजभाषा घौषित 
स्बतन्त्र भारत में अभी तक शौषित 
अंग्रेजी सौतन तुम पर  आरोपित
जय जय नमन 
नमन तुझे हिंदी
कोटि - कोटि नमन तुझे हिंदी


( हिंदी दिवस की समस्त मित्रों को हार्दिक बधाई )



मिलाप सिंह भरमौरी 



Thursday, 12 September 2013

आज मेरे भारत में


आज मेरे भारत में 
क्या हो रहा है ?
यह क्यों हो रहा है ?

आज मेरे भारत में 
दस वर्षों के लिए
एडवांस में अन्न है
फिर भी कोई बच्चा 
दस दिनों से भूख के मारे  
तडफ रहा है
ऐसा  क्यों हो रहा है ?

आज मेरे भारत में
 फौलादी सिपाही
जो दुनिया  को जीत  सकता है
सीमा  पर चूहे -गीदडों  के हाथों
मर रहा है
यह क्यों हो रहा है ?

आज मेरे भारत में
ग्रेजुएट, मास्टर डिग्री वाले 
बेरोजगार है
और मेट्रिक पास 
सरकारी नोकरी  कर  रहा है
यह क्यों हो रहा है ?
आज मेरे भारत में 
यह  क्या हो रहा है ?


मिलाप सिंह भरमौरी 

Wednesday, 11 September 2013

एक पल कम नही है

कई दिनों  से बैठा इन्सान 
सपने संजौता  रहता है
फर्श  पर बिखरे मोतिओं  को 
उठा - उठा  कर  पिरौता  रहता है

तन्हाई  में  सपने संजोना 
माला के मोती पिरोना 
शायद उसकी फितरत है
पर मोतिओं  से  पिरोई
इस  माला को 
शन  से फिर टूट जाने के लिए
शायद एक पल कम नही है

नये लोगों ने पाले  है शौक 
सचमुच रखते है कितना जोश 
देखा -देखी   में बम्ब बनाना  
इक - दूजे को नीचा  दिखाना

खेल रहे है विज्ञानं से
मानव जाति  को भुलाकर
कर   रहे है हाथापाई 
मजहब को हथियार बनाकर

सोचो जरा 
मानव जाति  को मिटाने  के लिए
एटम बम्ब के बटन को दबाने के लिए
शायद एक पल कम नही है


मिलाप सिंह भरमौरी 

Monday, 9 September 2013

धरा का स्वर्ग : मणिमहेश


आसमान में उड़ते बादल  
मध्यम - मध्यम श्यामवर्ण में
धरा पर फैली बर्फ दूर तक 
सफेद चादर सी सफेद वर्ण में
कभी अंधकार कभी उजाला 
मनमोहक दृश्य लगे निराला 
सपना नही यह अपना देश है
धरा का स्वर्ग यह मणिमहेश है

उन्मुक्त ख्याल में उड़ते  बादल  
मदमस्त- सी चाल  में घूम रहे है
फेरी लगाते  बार -बार
देखे मिलाप अगणित बार
मधुर स्पर्श से छुए धरा को
मानों  प्रेम से चूम रहे है
प्रकृति संगम का यह जीता भेष है
धरा का स्वर्ग यह मणिमहेश है

प्रकृति ने ऐसा  नशा बिखेरा  
भूल गये सब मेरा - तेरा
शिव की चिलम  का नशा निराला
प्राणी लगे जैसे पिया हो प्याला 
इन्सान प्रार्थना करे शिव से
भूले  न यह दृश्य मन से 
यह दुनिया  का बस  मंजर एक है 
धरा का स्वर्ग यह मणिमहेश है 


मिलाप सिंह भरमौरी 


bharmour





Friday, 6 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति : धर्म पर गलत असर


कोई गलत असर नही पड़ेगा धर्म पर
इससे और भी आस्था बड़ेगी धर्म पर 
और भी दिव्या होगी 
हवन कुण्ड  की ज्वाला 
और भी विस्तृत होगा
 धर्म का उजाला 
एक ही डोर से बंध जायेगा समाज
सुनहरे युग का होगा आगाज 

पहले जैसे ही बजेगी मन्दिरों में घंटिया 
पहले जैसे ही होगी आरती -पूजा 
पहले वाले ही होंगे आराध्य 
पर आराधना होगी पहले से भी  सभ्य  
वही  शास्त्र होंगे 
वही  वेद  होंगे
वही  होंगे पुराण  
उनसे ही जायेगा समस्त जगत को ज्ञान 

कर्म  -कांड वही  होंगे 
वही  होगा अखंड ध्यान
पहले जैसे ही मुण्डन  होंगे
 वैसे ही होंगे पिंड - दान
वही  धर्मस्थल होंगे 
वही  कर्म स्थल होंगे
वही  मन्त्र होंगे 
वही  शलोक  होंगे 
वही  रिवाज होंगे 
और वही  होंगे लोग

कुछ थोडा सा अंतर भी होगा 
जो  इस प्रथम  हिन्दू महा संगीति का मन्त्र होगा
पहला यह कि  
कर्म-कांड करते 
या पूजा पाठ  करते 
कोई पंडित किसी की  जाति  नही पूछेगा 
यजमान परिचय 
सिर्फ गोत्र तक ही सीमित  होगा

दूजा यह कि 
कर्म -कांड करने वाला 
शास्त्रों को पढने वाला 
सिर्फ -और -सिर्फ पंडित होगा
न  कि वो इक ब्राहमण होगा 
वो होगा सच्चा शास्र्तों  का ज्ञानी 
न की कोई वंशानुगत अज्ञानी
उसे होगा वेदों का ज्ञान
उसे याद  होगा पुराण  
उसमे होगी दिव्या ज्योति 
उसमे होगा दिव्या ध्यान
वो किसी भी जाति  का होगा 
पर उसमे होगा वान्षित  ज्ञान

इस नई  व्यवस्था से कुपित नही होंगे देव
न ही पितृ गण  हमसे रुठेंगे
कितना सभ्य  हो गया है इन्सान
वो उपर बैठे सोचेंगे 
इससे न धीमी होगी ध्यान की माला
वो उसी गति से घूमेंगी
हमारे धर्म की बुलंदी 
फिर एक बार आसमान को चूमेंगी

आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा


मिलाप सिंह भरमौरी

Thursday, 5 September 2013

बापू और प्याज


कई दिनों से मैंने 
प्याज नही खाया था 
आज  मगर  कुछ  ज्यादा ही 
जी ललचाया था

कई दिनों से मैंने
टी वी  पर भी इसकी  अनुपस्थिति पाई  थी 
प्याज के भाव की कोई 
मसालेदार खबर नही आई  थी

मैंने सोचा रेट घट गया होगा
इसलिए अचानक 
सुर्ख़ियों से हट गया होगा

मैंने उठाया बैग  
चल पड़ा  लेने प्याज
अच्छे -अच्छे  प्याज उठाकर 
दुकानदार से तुलवाए 
हाथ बडाकर  ख़ुशी -ख़ुशी में 
कपड़े के बैग  में भरवाए

रेट पूछा  उससे तो 
मेरी बुद्धि चकराई  
मैंने भी थोड़ी सी तिकडम बाजी   अजमाई 

रौब से बोल मैंने उससे
अबे क्या मुझसे ज्यादा पैसे ले रहा है
नीयूज  वाला तो चैनल पर
इसकी कोई खबर नही दे रहा है

दुकानदार बोला  मुझसे
अरे गुस्सा मत करो भाई
हमारी तो सारी  की सारी  मेहनत की है कमाई  

ये तो 
हलात   ने थोड़ी सी गडबडी कर  दी है
प्याज तो अभी महंगा ही है
बस  बापू की खबर चल गई है



मिलाप सिंह भरमौरी

Wednesday, 4 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति :आगे का भाग .....



नही -नही- यह 
गलत सलाह है
हमें किसी ओर ही राह  पे चलना होगा
अब हम इक्कसवी सदी में है
अब धीरे -धीरे 
ये समाज ही बदलना होगा

नही छोड़ना  है हिन्दू धर्म को
नही थामना  है किसी और धर्म को
बस  धर्म के इस मिथ्या पक्ष को बदलना है
जो चुप -चाप प्रवेश कर  गया था इसमें
इक विष ,इक रोग बनकर 
इस पुरातन -सनातन तन में
इस चिरंजीवी धर्म में

उस जाति  -प्रथा को दूर करना है
इसका कोई ओर  उपचार नही है
हमें 
प्रथम हिन्दू महा संगीति के
पथ पर ही  चलाना है

सुनहरी था हमारा आदिकाल  
भविष्य भी हमारा भव्य ही होगा
अब वक्त आ गया है 
इस कुरीति को दूर करने का
अब हर कोई यहाँ पर सभ्य होगा

बहुत  झेला  है अपमान 
बहुत  लुटाया है मान 
बस  किसी ने चुपके  से शरारत  कर  के
छीन  लिया था हमसे सम्मान
हम इस सब के अधिकारी नही थे
हमें बनाया गया था धोखे से
वास्तव में हम भीखारी  नही थे 

हमने भी जन्म लिया था 
उसी रंग के खून से 
उसी क्रिया से ,उसी प्रक्रिया से
हमको भी भेजा  था मालिक ने 
मानव  की जून  में
पर यहाँ  हम लोगों से धोखा हुआ था 


कविता का अगला भाग आगे की पोस्ट में भेजूंगा 



मिलाप सिंह भरमौरी 

Tuesday, 3 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति : आगे का भाग..



फिर एक सज्जन ने उसे सलाह दी
भाई चुप -चाप 
तुम हो जाओ 
बेटी के साथ
रहने दो किनारे में
 तुम अपने माँ और बाप
हो सकता है बेटी
 आप की बात न माने 
आजकल के बच्चे है
क्या कर  जाये न जाने
क्या पायोगे तुम फिर 
कैसे जिओगे तुम फिर. 

फिर वो बोला 
 बात तो तुम्हारी ठीक है
पर मेरे और भी दो बच्चे है
कमबख्त इसी समाज में
करने उनके भी रिश्ते है
बात -बात पर 
उनको ससुराल वाले ताने देंगे 
तेरी बहन  ने ऐसा  किया था 
तेरे माँ -बाप ऐसे  है
तुम्हे  क्या  पता भाई साहब 
आज मेरे हलात  कैसे है

उसकी करुणामयी 
स्थिति को देख के
एक उम्र-दराज महिला 
जो बैठी थी उसके सामने
अपने तजुरवे  के हिसाब से बोली
बहुत  देर से सम्भाल रखे थे उसने शब्द
लेकिन अब गुत्थी खोली

आजकल लडकियों को
ज्यादा पढ़ना ही नही चाहिए 
ये सब पढ़ाई  का ही कमाल  है
जो आपके परिवार में हो रहा
इस तरह का ववाल  है
न जाती वो कोलेज 
न होती लडके से मुलाकात
न होती  उनकी बातचीत 
न होता ये सारा बवाल

पंचांग तो कहता है 
ये इक्कसवी शदी है
पर यह  सोच तो कहती है कि 
हम बहुत  पीछे कहीं  है
तीन  हजार साल पहले तो मिलती  थी 
लडकी को शिक्षा 
गार्गी का नाम पढ़ा था 
पता नही कौन सी थी कक्षा 
गार्गी ही क्यों ओरों के भी 
कई उदारण मिलते है
कहते है बहुत  सी विदुषियां
हुई थी वैदिक काल  में 
बहुत  से मन्त्र लिखे है महिलायों ने 
जिन्हें आज भी पढ़ते है 
हम यज्ञ और  जाप  में 
और इस जाति - प्रथा का
 इतना भय कि 
 दे  दी सलाह लडकी को न पढ़ाने  की

आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा
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मिलाप सिंह भरमौरी 

Monday, 2 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति : क्यों ? आगे का भाग .......

प्रथम हिन्दू महा संगीति :  क्यों ?   आगे का भाग .......



......... फिर  झट से
 पलट  कर  वो जा 
पहुंच गया
आधुनिक परिद्रिश्य  पर
पहुंच गया वो 
कुछ भारत के राजघरानों पर
कुछ  व्यवसायिक  घरानों पर
नाम गिनाने  लगा वो 
उसने उससे शादी की थी 
उसकी फलानी जाती थी
उसने फ़लाने  धर्म में शादी की

उनको क्यों ये समाज कुछ नही कहता 
क्यों पहुंच जाता है 
मेरे घर तक ये
अगर उनको कुछ नही कहता तो क्यों 
 नही बनाता  
ऐसी  व्यवस्था 
जिसमे न हो   ये जाति  प्रथा 
अगर पूछे कोई जाती तो सिर्फ हिन्दू कहे 
और भाई चारा धर्म का केंद्र बिंदु रहे

ये सब बाते उसने
 अपने  दिल को तसल्ली देने के लिए की थी
फिर उसके बाद
 उसने  एक लम्बी साँस ली थी 

फिर जा पहुंचा वो 
अपनी घरवाली पर
वो पढ़ी -लिखी है
बैंक मनेजर है 
जब कहीं  आस -पडौस में 
या कहीं  जान  -पहचान  में 
इस तरह का विवाह होता था
तो वो बहुत  हंसती थी
मुस्कुराती थी 
मजाक उड़ाती थी
बहुत  बातें करती थी 
उनके चरित्र के बारे में
उसे क्या पता था 
कुछ सालों  बाद 
ये सब सब होगा 
उसके भी घर में
ये सब सोचा नही था 
सपने में भी उसने

आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा 



........milap singh bharmouri

Sunday, 1 September 2013

प्रथम हिन्दू महा संगीति क्यों ? : आगे का भाग



मै  ब्राह्मण  हूँ
 पर मेरी बेटी
 एक हरिजन युवक से शादी करना चाहती है
सुंदर है, कामयाव है
 पढ़ा - लिखा है 
अगर कोई कमी दिखे तो मुझे बताओ
 वो निर्भय  होकर हमसे कहती है

बात तो सच है
जो हमने  देखे ब्राह्मण युवक है
वो उसके आगे कुछ भी नही है
किसी  भी तरह से  परख लो
वो उसके आगे टिकते ही नही है
पढ़ाई  में भी, चतुराई में भी
और कमाई  में भी

उसका उनसे कोई मेल नही है
पर कैसे समझाऊ  
इस जाति  प्रथा से निकलना 
मेरे लिए बच्चों का खेल नही है

अगर बेटी की मानु
तो भाई -बन्धु 
माता  -पिता सब 
मुझसे दूर हो जांएगे 
अगर उनकी मानु  
तो ये  नादान  बच्चे न जाने क्या कर  जायेंगे 

मै  फसा हुआ हूँ 
बीच  में पित्रि -भक्ति  के, पुत्री प्रेम  के
मै  किसको अपनाऊ 
 मै  किस को ठुकराऊ  
मै  पढ़ा -लिखा हूँ
 पर इस निर्नेय के लिए
 किसके पास जायूं 

फिर थोडा - सा सम्भल के 
वो कहता है
शुरू के वेद  भी कहते है कि 
हिन्दू धर्म  में 
कोई जाती- प्रथा नही थी 
कितने ही सभ्य  थे वो जन 
उनकी आज जैसी दुर्दशा नही थी
गर स्तर अंतर था  तो 
वो व्यवसाय पर निर्भर था
लेकिन हर व्यक्ति का 
सामाजिक भविष्य उज्ज्वल था। .....


आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा 



......milap singh bharmouri

Saturday, 31 August 2013

क्यों ? प्रथम हिन्दू महा संगीति

क्यों ?
 प्रथम हिन्दू महा संगीति

कारण  है
 प्रथम  हिन्दू महा संगीति के लिए
मानवता और धर्म की प्रगति के लिए
यह जरूरी है

मिला था मुझे ट्रेन में
एक अजनबी सज्जन 
हृस्ट  -पुष्ट 
अफ्फसर  स्तर का
स्वर्ण - ब्राह्मण

बहुत  दुखी था , कुंठित
चारो और से 
समाज की बेड़ियों से बंधा 
छटपटा  रहा था 
घायल पंछी - सा 
जैसे जाति   प्रथा  ने 
शिकार  कर  लिया  था उसका

जैसे आखरी साँस की तपिश  को
 ठंडा करने के लिए
किया हो इशारा
 उसने दो घूंट पानी के लिए

फिसल गयी उसकी जुवान 
अजनवी पेसेंजर के सामने
उसके वो क्या लगते थे 
उसको रहा ही नही व्यथा में ध्यान में

उसने कहा  मै 
बहूत  दुखी हूँ ,व्यथित हूँ 
असमंजस में हूँ 
मुझे घेर रखा है समाज ने
मुझे बांध रखा है 
बेड़ियों में जाति  प्रथा ने 
में पढ़ा -लिखा हूँ  
फिर भी असमंजस में हूँ 
निर्नेय लेने में…….


आगे की कविता अगली पोस्ट में भेजूंगा 



.....milap singh bharmouri

Friday, 30 August 2013

परिचय ( प्रथम हिन्दू महा संगीति )



महा संगीति 
मतलव धर्म संशोधन 
महा निर्णेय
सामाजिक और  राजनीतिक  तौर  
से वाध्य  धार्मिक निर्णेय

रोज रटते है हम
इतिहास को 
रोज पढ़ते है हम
समाज को
फायदा तब है अगर
हम पुराने तजुरबो को
उनकी अच्छाईयों को 
आज के समय में अपनाए
और उनके द्वारा की गई गलतियों को न दोहराएँ

महा संगीति !
महा संगीति
 कब होती है
महा संगीति तब होती है
जब धर्म, मानने वालों में दुबिधा बन  जाये
जब धर्म, समाज के ढांचे के लिए  असुविधा बन जाये
जब लोग धर्म को छोड़ने लगे
किसी और धर्म से जुड़ने लगे
जब अन्य मत
लालच के बीज  बोने लगे
जब धर्म के अस्तित्व को खतरा होने लगे
तब होती है 
महा संगीति


......milap singh bharmouri

Thursday, 29 August 2013

प्रथम हिन्दू महासंगीति

जब - जब धर्म में
कुरीतियाँ आई
समाज व्यवस्था जब
उसने उलझाई 
बौध ,जैन समाज ने
सभाएं बुलाई
और  समय अनुसार 
समस्याएं सुलझाई

क्स्स्प ,मित्र ,तिस्स  ,श्रवण 
सब के सब थे सभ्य  जन
जनता की इच्छा उन्होंने न ठुकराई
सरल  ,सुगम  व्यवस्था अपनाई 

टूट रहा है हिन्दू समाज 
कर  रहे  है धर्मांतरण   
यह सब उहीं  नही हो रहा
कुछ तो होगा इसका कारण

कारण  सभी जानते है
और  धर्मान्तरित को भी
पहचानते  है
सबसे बड़ा कारण  है जाति  व्यवस्था
जब इससे बाहर  निकलने  का 
नही दिखता  रास्ता
लोग बदल लेते है आस्था 

फहरा देते है 
वस्ती पे और का झंडा 
सच में हिन्दू धर्म के लिए यह है 
सबसे बड़ा फंदा

अब !
उठो जागो ,धर्म रक्षको 
उठो जागो , हिन्दू विचारको
उठो जागो ,हिन्दू शासको 
अब वक्त आ गया है
इस महा कुरीति को दूर करने का
अब वक्त आ गया है 
प्रथम  हिन्दू महा संगीति  करने का


...... milap singh bharmouri

Wednesday, 14 August 2013

रेलवे का क्वाटर

रेलवे का क्वाटर

याद  बहुत  आता है 
वो रेलवे का क्वाटर  
रुका  था मै  
एक रात  जहाँ पर
बात उन दिनों की है जब हम 
दर  -वदर  भटके जा रहे थे
कभी पटना कभी लखनऊ  में
बेरोजगारी के धक्के खा रहे थे

ऐसी  ही किसी टक्कर  में
हाँ याद  आया ,रेल के एग्जाम के चक्कर में
मै  जा पहुंचा एक फ्रेंड के पास
बेरोजगारी की एक रात  बिताने की थी अपनी आस
फ्रेंड मेरा रेल का मलाजम  था
उसके पास रेल का क्वाटर  था
वह  मेरा लंगोटिया यार था 
हमारा बचपन का प्यार था 
आशा के अनुरूप उसने स्बागत किया
और  भाबी जी से भी 
खाने -पीने  के लिए अच्छा  प्राप्त किया

रात  को अलग कमरे में  बढिया-सा  बिस्तर हो गया
मै  भी दिन भर का थका  उस पर सो गया 
सुबह  के तीन  बजे हल्की  सी नींद  खुली 
बिस्तर पर जब  हाथ घुमाया 
अचानक मेरी नींद उडी
मै  चौंका , उठ बैठा 
ये सब कैसे हो गया था 
बिस्तर का हिस्सा बुरी तरह से गीला  था
मैंने चारों  तरफ दिमाग घुमाया पर अपने को ही दोषी पाया 
टेबल पर रखे लौटे को देखा उसको भी यूँ - का- त्यों पाया
ये सब मुझ से ही हुआ है 
 पर जो भी है पहली बार हुआ है
बहूत  बुरी लगने लगी वो घड़ी 
सुबह  कैसे मुहं दिखाऊँगा माथे पर चिंता पड़ी

फिर अचानक एक उपाय मन में आया 
खुसी से मनो मन भर आया 
क्यों  न प्रेस  से बिस्तर को सुखाया जाये
इस बदनामी की घड़ी से खुद को बचाया जाये
चोरों के स्टाइल में मैने  मोवइल  के टोर्च को जलाया
और चरों ओर  घुमाया
मन पुलकित हो उठा जब सामने अलमारी में प्रेस नजर आया 
धीरे -धीरे जोर लगा के 
बहूत  कोशिस की सुखाने की
पर जब एक घंटे बाद भी
कोशिस नाकाम हुई खुद को बचाने  की
जैसे  -तैसे  कर  के मैने 
सोच -विचार में रात  बिताई
लोगों का सामना करने के लिए 
नजदीक -नजदीक सुबह  आई 

आठ बजे के लगभग -लगभग
भावी जी  कमरे में आई
 मै  शंकित था थोड़ी सी उससे नजर चुराई
नाश्ता करने आ जाओ उसने मुझसे बोला 
और फिर अचानक बिस्तर की तरफ देखा 
मेरे  तो माथे पर खिंच गई
चिंता की रेखा 
फिर बोली बिस्तर गीला  तो नही हुआ 
यहाँ पर छत टपकती है 
और रात  को बारिश भी हुई है
इन शव्दों को सुनकर मनो मेरी सांसों में साँस आई थी
सचमुच बहुत  ही अनोखी मैने  वो रात  बिताई थी 


……… मिलाप सिंह भरमौरी 

Friday, 9 August 2013

मै मजदूर हूँ

मै  मजदूर हूँ
मजदूरी से  कमाता हूँ
दिनभर मेहनत  करता हूँ
फिर भी रुखी खाता  हूँ
वो बस  बातें करता है
लोगों को ठगता है
भरपेट खाता  है
ऐश  परस्ती पे 
लुटता है

कर्म इमान  है मेरा
धर्म निभाता हूँ
कभी मन्दिर बनवाता   हूँ 
कभी मस्जिद चुनबाता  हूँ
पर जब वो मजहब का पुजारी
दंगे करवाता  है
तो उस भगदड़ में
मै  ही मारा  जाता हूँ

मै  खून - पसीने से 
तख्त बनाता  हूँ
बस  एक इशारे पर
उस तक ले जाता हूँ
वह  झट से जाकर 
उस पर सो जाता है
उल्ट - फेर  के चक्कर   में खो जाता है
सोये -सोये जब वह 
निर्णय  लेता है
किसी गली मोहल्ले की भगदड़ में 
मै  ही मारा  जाता हूँ

में मजदूर हूँ कभी सड़के  बनाता  हूँ
जून की गर्मी में कोलतार बिछाता हूँ
वो ए सी गाड़ी में 
ऐश  लुटाता  है
मै  कितने पैसे में खाता  हूँ 
मनघडंत  आंकड़े  बनाता  है
जब भी वह  कोई योजना बनाता  है
कमब्खत  मै  ही क्यों  मारा  जाता हूँ



………… मिलाप सिंह भरमौरी 

Wednesday, 7 August 2013

सुर्ख होंठो से

सुर्ख होंठो से शराब छलक  रही है
तेरे  होने से रात महक रही है

सोचता हूँ किस तरह व्यान   करूं
मेरे होंठों  पे जो बात थिरक रही है

पहाड़ों की इस बर्फीली सर्दी में
जिस्म में जैसे आग  दहक   रही है

झौंकें  जबानी के जाग रहे है ' अक्स '
कुछ तेरी भी चाल  बहक  रही है

बदली से चाँद निकल रहा है ऐसे 
जैसे चेहरे से नाकाव सरक रही है


........ मिलाप  सिंह  भरमौरी   

Monday, 5 August 2013

कितनी संगदिल है

कितनी  संगदिल है  मेरी चाहत 
दिल को  पहुंचाती नही मेरे  राहत 

हर हंसी से नजर मिलाते  हो
देखी  है मैंने तेरी भी शराफत

प्यार पर शक करना मोहबत में 
हुस्न की यारो है पूरानी  आदत

तेरी हरकतें में सब पहचानती हूँ
दिल में कालिख बातों में हलावत

सिर्फ इक बार इनायत कर  दे
फिर उम्रभर करूंगा तेरी इबादत


……… मिलाप सिंह भरमौरी